दिल्ली में कांग्रेस लोकसभा चुनाव अकेले चुनाव लड़ेगी. आज प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष शीला दीक्षित ने साफ-साफ शब्दों में कह दिया कि पार्टी दिल्ली में आम आदमी पार्टी से गठबंधन नहीं करेगी. दीक्षित ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बैठक के बाद यह बयान दिया है. दरअसल, आप से गठबंधन को लेकर कांग्रेस में दो राय थी. शीर्ष नेतृत्व आप से गठबंधन करने के पक्ष में था तो वहीं पार्टी का एक धड़ा गठबंधन के विरोध में था.
राहुल गांधी ने आज दिल्ली में गठबंधन हो या नहीं इसपर चर्चा के लिए बैठक की. सूत्रों के मुताबिक, दिल्ली कांग्रेस के नेताओं ने राहुल गांधी को सलाह दी कि आम आदमी पार्टी से गठबंधन करना सही नहीं होगा. बैठक में शीला दीक्षित, पीसी चाको, कुलजीत नागरा, सुभाष चोपड़ा, जेपी अग्रवाल, अरविंदर सिंह लवली, अजय माकन, देवेंद्र यादव, राजेश लिलोठिया और हारून यूसुफ मौजूद थे.
आम आदमी पार्टी को काग्रेस से गठबंधन की उम्मीद थी. दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी संयोजक अरविंद केजरीवाल ने खुद कांग्रेस से गठबंधन की इच्छा जताई थी. इसके पीछे वोट प्रतिशत और सीटों का गणित था. दरअसल, 2014 के लोकसभा चुनाव में सभी सीटों पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. वोट प्रतिशत पर नजर डालें तो बीजेपी पर 46.6 प्रतिशत मतदाताओं ने भरोसा जताया था. कांग्रेस को 15.2 प्रतिशत, आम आदमी पार्टी (आप) को 33.1 प्रतिशत वोट मिले थे. अब अगर आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के वोट प्रतिशत को जोड़ दिया जाए तो यह आंकड़ा 48.3 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा.
आम आदमी पार्टी को एक समय में कांग्रेस का धुर विरोधी माना जाता था. 2013 से पहले और बाद में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के खिलाफ कई आंदोलनों का नेतृत्व किया और यहीं से राजनीतिक करियर की शुरुआत की. 2013 विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी कांग्रेस को हराकर पहली बार दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी. बीजेपी को 31, आप को 28 और कांग्रेस को आठ सीटें मिली. यानि 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में किसी भी पार्टी को पूर्ण बहुमत नहीं मिली. कांग्रेस ने बाहर से समर्थन दिया और केजरीवाल पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री बने.
47 दिनों तक सरकार चलाने के बाद केजरीवाल ने इस्तीफा दे दिया. जिसके बाद दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. फिर लोकसभा चुनाव के बाद 2015 में विधानसभा चुनाव हुए. इस चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक 67 सीटें हासिल की. कांग्रेस शून्य पर सिमट गई और बीजेपी ने मात्र तीन सीटें हासिल की.