अभिभावकों को ठगने के लिए सज चुकी हैं स्कूलों की दुकानें

आलोक कौशिक, शैक्षिक सत्र शुरू हो गया है। निजी स्कूलों ने अभिभावकों को ठगने के लिए दुकानें सजा ली हैं। अभिभावक स्कूलों की बढ़ी फीस और वार्षिक शुल्क से परेशान हैं हीं, वहीं बाजार से अधिक दाम पर पाठ्य पुस्तक, ड्रेस आदि स्कूलों से खरीदना भी उनकी मजबूरी बन चुकी है।

स्कूलों के आगे लंबी कतारें लगने लगी हैं। नामांकन का समय आ गया है। अभिभावकों को देखकर लगता है कि वे कितने तनाव में हैं। कभी आपने भी ऐसा तनाव झेला होगा। पहले ऐसी मारामारी नहीं थी। आज पढ़ाई का अर्थ ही प्राइवेट एजुकेशन हो गया है। मजबूरी में ही लोग सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाते हैं। हमारे देश में शिक्षा को पारंपरिक रूप से एक पवित्र दर्जा प्राप्त रहा है।

आजादी के बाद एक लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में सरकार से यह अपेक्षा की गई कि वह हर नागरिक को बेहतर शिक्षा उपलब्ध कराएगी। लेकिन इस स्तर पर वह बुरी तरह फेल हुई। नतीजा यह हुआ कि ऊपर से नीचे तक शिक्षा धीरे-धीरे करके निजी हाथों में आ गई। सामाजिक बदलाव के साथ कुछ परंपरागत मान्यताएं भी बदलीं। एक राय यह कायम हुई कि शिक्षा भी एक तरह का कारोबार ही है, और शिक्षक कोई देवता नहीं। वह पैसे लेता है और ज्ञान देता है। जितने ज्यादा पैसे, उतना बेहतर ज्ञान।

प्राइवेट संस्थानों ने इसी को अपना सूत्रवाक्य बना लिया। उनका कहना है कि उन पर समाज का भारी दबाव रहता है। उनसे बेहतर गुणवत्ता की अपेक्षा की जाती है इसलिए उन्हें अपने संसाधनों पर काफी खर्च करना पड़ता है। इसके लिए उन्हें फीस बढ़ानी पड़ती है। जबकि अभिभावकों का आरोप है कि वे सिर्फ मुनाफे के लिए अनाप-शनाप फीस वसूलते हैं। जरूरत इस तकरार को रोकने और किसी सर्वमान्य समाधान तक पहुंचने की है। सुप्रीम कोर्ट के पांच न्यायाधीशों को लेकर गठित संविधान पीठ ने शिक्षा को परिभाषित करते हुए कहा है कि यह कोई कारोबार नहीं, अंतत: एक मिशन और सामाजिक जवाबदेही है। इसलिए राज्य को बिना सरकारी सहायता के चलने वाले निजी शिक्षण संस्थानों में भी दाखिले की प्रक्रिया की देखरेख करने और फीस के निर्धारण का अधिकार है। 

प्राइवेट स्कूल अवैध वसूली का ठिकाना बन गए हैं। सत्र शुरू होने से यह वसूली शुरू होती है और पूरे साल चलती है। स्कूल पूरे साल विभिन्न कार्यक्रम, शिविर, शिक्षण यात्रा के नाम पर पैसा लेते हैं। कुछ स्कूल इस तरह के कार्यक्रम अनिवार्य रूप से चलाते हैं। शिक्षण यात्रा के दौरान अभिभावकों से एनओसी पत्र पर हस्ताक्षर कराते हैं कि किसी भी आप्रिय घटना होने पर स्कूल जिम्मेदार नहीं होगा। ऐसे में स्कूल इस तरह की यात्राएं क्यों कराते हैं, जिसमें बच्चों को सुरक्षा मुहैया नहीं करा सकते।

अभिभावकों से वार्षिक कार्यक्रम के नाम पर भी लॉटरी कूपन दे लोगों से पर्ची कटवाई जाती है। स्कूल फीस देने में एक दिन की देरी होने पर स्कूल अतिरिक्त रुपये का चार्ज लगा देते हैं। वहीं, स्कूलों में तीन महीने की फीस एक साथ जमा कराई जाती है, कुछ स्कूलों में छह महीने तो कुछ स्कूलों में साल भर की फीस भी। जबकि किसी भी अभिभावक को तीन महीने, छह महीने या साल भर का वेतन एक साथ नहीं मिलता है। कुछ स्कूल पास और फेल करने का खेल भी करते हैं। इसमें छात्रों को फेल कर दोबारा से पेपर कराने के नाम पर पैसे लेते हैं। इसके बाद अभिभावकों से भी पास कराने के नाम पर वसूली करते हैं। 

इस तरह की मनमानी पूरी तरह बंद होनी चाहिए। इसके लिए सरकार को स्कूलों के खिलाफ सख्त नियम बनाकर इन्हें जिला प्रशासन के नियंत्रण में कर देना चाहिए। 

शिक्षा अधिकारियों का कहना है कि सरकार निजी स्कूलों के खिलाफ एक्ट बना रही है। इस एक्ट के लागू होने के बाद नियमानुसार अधिकारी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे। वहीं, वर्तमान में नियमों के दायरे में रहकर अधिकारी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं।

निम्नलिखित तरीकों से इन समस्याओं का समाधान किया जा सकता है:- 

1. फीस ऑनलाइन जमा हो : स्कूल में फीस ऑनलाइन जमा होनी चाहिए। इससे स्कूलों में किस मद में कितना पैसा आता है, इसका पूरा रिकॉर्ड रहेगा। इसके साथ ही जिला प्रशासन इन स्कूलों का ऑडिट भी आसानी से कर सकता है। स्कूल लगातार नुकसान होने की बात कहकर या विकास के नाम पर अभिभावकों की जेब काटते हैं। इससे भी अभिभावकों को छूटकारा मिल जाएगा।

2. एमआरपी पर ज्यादा कीमत की चिट : स्कूल द्वारा बताई जा रही अधिकृत दुकानों से अभिभावकों को जो पुस्तक पुस्तक या सामग्री दी जा रही है, उसमें धांधली का खेल चल रहा है। स्कूल एमआरपी पर चिट लगा रहे हैं और ज्यादा कीमत की चिट लगाकर बेच रहे हैं। इससे अभिभावकों को आर्थिक नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ अवैध तरीके से लूटा जा रहा है।

3. पढ़ाई की गुणवत्ता कमजोर हो रही : शहर के ज्यादातर स्कूलों में पढ़ाई की गुणवत्ता खराब है। स्कूलों में मोटी फीस देने के बाद भी अभिभावक अपने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने पर मजबूर हैं। ऐसे में अभिभावकों पर स्कूल की फीस देने के साथ-साथ ट्यूशन फीस देने पर भी खर्च बढ़ रहा है। अभिभावकों का कहना है कि स्कूलों की लापरवाही के कारण ही बच्चे सामाजिक ज्ञान से भी दूर होते जा रहे हैं।

4. डीआईओएस एनओसी क्यों नहीं करते रद्द : स्कूल अभिभावकों से फीस, पाठ्य पुस्तक और अन्य मद में अवैध वसूली करते हैं। इसके बाद भी डीआईएएस इन स्कूलों की एनओसी निरस्त नहीं करते। जिला स्तर पर एक कमेटी बनाई जाए। यह कमेटी अभिभावकों की शिकायत पर स्कूलों की जांच करे। इस कमेटी में अभिभावकों को भी शामिल किया जाए। जांच के बाद इन स्कूलों की एनओसी निरस्त करें।

5. सुरक्षा का हो स्कूल में प्रबंध : स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा के लिए कोई बंदोबस्त नहीं होता है। छोटे बच्चों को प्रथम या द्वितीय तल पर बैठाया जाता है। जबकि इन्हें भूतल पर बैठाने की व्यवस्था होनी चाहिए। स्कूल बड़े बच्चों को प्रथम या द्वितीय तल पर बैठा सकते हैं। इसके अलावा स्कूलों में फायर अलार्म, प्राथमिक उपचार आदि की व्यवस्था होनी चाहिए।

स्कूलों में मेडिकल सुविधा, फायर अलार्म, प्राथमिक चिकित्सा के नाम पर मोटी रकम वसूली जाती है, लेकिन अधिकतर स्कूलों में इस प्रकार की कोई भी सुविधा नहीं है। हर साल स्कूल इन चीजों के नाम पर फीस में वृद्धि कर देते हैं। इन सब पर लगाम लगानी चाहिए।

अगर अभिभावक समय पर फीस जमा नहीं कर पाते हैं तो लेट फीस के नाम पर उनसे हर दिन 100 रुपये का जुर्माना लिया जाता है। ऐसे नियमों से अभिभावकों का शोषण हो रहा है। सालभर में एक दर्जन से अधिक मदों में पैसा वसूला जाता है। इसके लिए एक नियम निर्धारित किया जाना चाहिए।

स्कूलों को अपनी एनओसी का प्रसारण स्कूल के नोटिस बोर्ड पर लगाना चाहिए। इससे अभिभावक स्कूल के फर्जीवाड़े से बच पाएंगे। कई स्कूलों को मान्यता प्राप्त नहीं है। प्रशासन को उन सभी स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए।

कई स्कूलों में छोटे बच्चों के लिए सुरक्षा की कोई व्यवस्था नहीं है। आए दिन बच्चों के खिलाफ घटनाएं बढ़ रही हैं। सभी स्कूलों में छोटे बच्चों की सुरक्षा के लिए अलग से गार्ड लगे होने चाहिए। स्कूल की सुरक्षा के साथ ही बाहर भी सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम होने चाहिए।

हर साल स्कूल किसी न किसी कार्यक्रम, आयोजन और मेले के रूप में फीस से अलग भी पैसे वसूलते हैं। स्कूल अभिभावकों पर दबाव बनाते हैं और ऐसे आयोजनों के लिए पैसे जमा कराते हैं। पैसा जमा न करने पर बच्चो कों आयोजनों में भाग लेने नहीं दिया जाता। इन सब चीजों पर रोक लगनी चाहिए।

अधिकतर स्कूलों में शिक्षा का स्तर काफी खराब है। बच्चों को पत्र लिखना भी नहीं आता है। जब इतनी ज्यादा फीस वसूली जाती है, तो छात्रों को पढ़ाना भी चाहिए। जिन स्कूलों में छात्रों का पढ़ाई का स्तर खराब है। ऐेसे स्कूलों से फीस वापसी का प्रावधान हो।

कुछ लोग तो अपने बच्चों को स्कूल भेजने में भी असमर्थ हैं। फीस देना तो दूर उसके साथ-साथ पुस्तक, यूनिफॉर्म के खर्चे बोझ बन जाते हैं। स्कूल का व्यावसाय इतना लाभदेय हो गया है कि स्कूल वालों ने पुस्तक और स्कूल ड्रेस को व्यापार का रूप दे दिया है

अभिभावक स्कूलों के खिलाफ शिकायत कर सकते हैं। अभिभावकों की शिकायत पर कार्रवाई की जाती है। सरकार जल्द ही विधेयक ला रही है। इससे स्कूलों की मनमानी पर रोक लगेगी।

शिक्षा में सुधार के लिए आवश्यक कदम की जरूरत है। शिक्षा का मौलिक आधार प्रत्येक बच्चे तक पहुंचना चाहिए। हमारी सरकार को यह भी सोचना चाहिए कि वो आम जनता को क्यों इस प्रकार लुटने दे रही है।

सबसे बेहतर तो यह होगा कि सरकार अपने स्कूलों का स्तर इतना ऊंचा उठा दे कि लोग अपने आप उनमें अपने बच्चों को पढ़ाने लगें। 


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