“आख़िर सरकार ये तो मान ही रही है कि पुलवामा की घटना एक बड़ी चूक थी. ये चूक किसकी थी? इसकी जांच क्यों नहीं कराई जा रही है? हम तो कह रहे हैं कि ये चूक ही नहीं, बहुत बड़ी साज़िश भी है. सरकार को चुनाव की घोषणा से पहले इसकी जांच के आदेश देने चाहिए, नहीं तो फिर कुछ नहीं होने वाला. सब भूल जाएंगे. सीमा पर जवान ऐसे ही मरते रहेंगे.”
14 फ़रवरी को सीआरपीएफ़ के काफ़िले पर हुए चरमपंथी हमले में मारे गए अजीत कुमार की पत्नी ये बातें काफ़ी ग़ुस्से में बताती हैं और फिर उनकी आँखों से आँसू टपकने लगते हैं.
हालांकि आज ही भारत प्रशासित कश्मीर में त्राल इलाके के पिंगलिना गांव में सुरक्षाबलों और चरमपंथियों के बीच मुठभेड़ में तीन चरमपंथी मारे गए हैं, जिसके बाद भारतीय सेना ने कहा है कि पुलवामा हमले के मुख्य साजिशकर्ता मुदस्सिर अहमद ख़ान भी मारे गए चरमपंथियों में शामिल है.
लेकिन अजीत कुमार की पत्नी को इस बात का भी दुख है कि पुलवामा घटना के बाद हुई एअर स्ट्राइक की हर जगह चर्चा हो रही है जबकि पुलवामा में जवानों के मारे जाने का जैसे कोई ग़म ही न हो.उन्नाव में कोतवाली क्षेत्र के लोकनगर मोहल्ले के रहने वाले अजीत कुमार आज़ाद सीआरपीएफ बटालियन 115 में तैनात थे.
14 फ़रवरी को वो भी उस काफ़िले में शामिल थे, जिस पर चरमपंथी हमला हुआ था. एक दिन पहले ही उनकी अपने परिवार वालों से बात हुई थी और तब उन्होंने बताया था कि बटालियन सुरक्षित जगह भेजी जा रही है. अजीत कुमार की मां राजवती देवी सवाल करती हैं कि आख़िर एअर स्ट्राइक की घटना को राजनीति से क्यों जोड़ा जा रहा है?
वो कहती हैं, “जंगल में कहीं जाकर आप बम फ़ोड़ आए, जिसे न किसी ने देखा और न ही उसके बारे में कोई पुख़्ता सबूत हैं, उसे इतना प्रचारित किया जा रहा है. इतने जवान उससे पहले मर गए और उसके बाद भी मारे जा रहे हैं, उसकी कोई चर्चा नहीं. हम रोज़ टीवी में देख रहे हैं कि एअर स्ट्राइक का फ़ोटो लगाकर, नेता लोग भाषण देकर अपनी बहादुरी दिखा रहे हैं. कहा जा रहा है कि वहां इतने लोग मर गए. अरे भाई, मर गए होते तो वहां कुछ न कुछ तो मिलता ही.”
अजीत कुमार की मां जब ये बता रही होती हैं उसी समय उनकी पत्नी मीना गौतम रोते हुए बेहद ग़ुस्से में कहती हैं, “कहीं कोई नहीं मरा है. जो मरे थे उनके शव आए हैं, वहां कौन मरा है, किसने देखा है. सब फ़र्ज़ी है.”
अजीत कुमार के परिवार में चार भाइयों के अलावा उनके माता-पिता, पत्नी और दो छोटी बेटियां हैं. पत्नी मीना देवी को राज्य सरकार ने सहायक क्लर्क की नौकरी दी है.
परिवार वालों को मुआवज़ा भी मिला है लेकिन इस बारे में बात करने पर वो बिलख उठती हैं, “हमारा तो सब कुछ छिन गया है. वो चाहते थे कि बेटियों को डॉक्टर बनाएंगे. इस मुआवज़े से हम क्या बना लेंगे डॉक्टर? लेकिन ये हमारी समस्या है. हम तो चाहते हैं कि पुलवामा में जो ग़लती हुई है, वो लोगों के सामने आए ताकि दोबारा वो ग़लती न हो. फिर से बिना किसी वजह के जवान न मारे जाएं. आज हमारे पति दुश्मनों से लड़ते हुए मारे जाते तो हमें कितना गर्व होता, लेकिन….”
सीआरपीएफ़ की 115 बटालियन के सिपाही अजीत कुमार अपने पांच भाइयों में सबसे बड़े थे. उनके एक और भाई सेना में हैं जबकि एक भाई हाल ही में पुलिस कांस्टेबल हुए हैं.
इन लोगों का आरोप है कि उनकी बात कहीं नहीं सुनी जा रही है जबकि इस बारे में वो विभागीय अधिकारियों और मीडिया समेत हर जगह बता चुके हैं.
छोटे भाई रंजीत कुमार कहते हैं, “इतनी सुरक्षित जगह पर इतना विस्फोटक लेकर कोई चला जा रहा है, ये किसकी खामी है? ख़ुफ़िया विभाग की ख़ामी है, प्रशासन की है, सरकार की है, जिसकी भी हो ये जानने का हक़ तो हमें भी है और देश को भी है. आख़िर क्यों नहीं ये जांच सीबीआई या किसी अन्य एजेंसी को सौंपी जा रही है?”
रंजीत कुमार कहते हैं कि बालाकोट की घटना को लेकर जानबूझकर तमाम तरह की अफ़वाहें फैलाई जा रही हैं और उसकी आड़ में पुलवामा की घटना को सरकार भी नज़रअंदाज़ कर रही है और चाह रही है कि और लोग भी भूल जाएं. वो कहते हैं, “सबसे आश्चर्य तो इस बात पर हो रहा है कि विपक्षी दलों के लोग और अन्य लोग भी इस मामले में क्यों शांत बैठे हैं? हम लोग मांग कर रहे हैं तो हमारी कोई सुन नहीं रहा है.”
भारतीय वायु सेना के अधिकारी विंग कमांडर अभिनंदन की वापसी पर ख़ुशी ज़ाहिर करते हुए अजीत कुमार के परिवार वाले कहते हैं कि ये जितनी बड़ी क़ामयाबी है, पुलवामा में चालीस जवानों का मारा जाना और उसके बाद भी ये सिलसिला जारी रहना, हमारी बहुत बड़ी कमज़ोरी भी है. लेकिन इसकी कोई चर्चा ही नहीं कर रहा है.
रंजीत कुमार की शिकायत है, “हम इस तरह की बातें यदि कहीं कर भी रहे हैं तो लोग हम पर तंज़ कस रहे हैं. हम पर सवाल उठा रहे हैं कि हम अपनी सेना पर संदेह कर रहे हैं. जबकि ऐसा नहीं है. हम लोग तो सिर्फ़ सरकार से जांच की मांग कर रहे हैं.”
ऐसा नहीं है कि पुलवामा हमले की जांच की मांग सिर्फ़ अजीत कुमार का ही परिवार कर रहा है बल्कि इस हमले में मारे गए दूसरे जवानों के परिवार भी इस तरह की मांग कर चुके हैं.
शामली ज़िले के प्रदीप कुमार और मैनपुरी के राम वकील भी इस हमले में मारे गए थे और उनके परिवार वाले भी घटना की जांच चाहते हैं.
राम वकील की पत्नी गीता देवी फ़ोन पर बातचीत में साफ़ कहती हैं कि वो लोग इस घटना का बदला लेना चाहते हैं और बालाकोट हवाई हमले को वो इसका बदला क़तई स्वीकार नहीं करती हैं. वो कहती हैं, “सरकार इस हमले के सबूत सार्वजनिक करे और पुलवामा की घटना की भी जांच हो कि कड़ी सुरक्षा के बावजूद ये कैसे हो गया?”
14 फ़रवरी को जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ़ के 78 गाड़ियों के काफ़िले पर उस वक़्त चरमपंथी हमला हुआ था जब ये काफ़िला श्रीनगर की ओर जा रहा था. इस हमले में सीआरपीएफ़ के 40 से ज़्यादा जवान मारे गए थे.
समीरात्मज मिश्र,
बीबीसी से साभार