आरटीई की कठिन शर्तों को निरस्त करने के लिए पा स वा का प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्वा के प्रदेश अध्यक्ष आलोक कुमार दूबे के नेतृत्व में 17 सदस्यी पासवा का प्रतिनिधिमंडल आरटीई के कठिन शर्तों को निरस्त करने हेतु मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मुलाकात की एवं ज्ञापन सौंपा। मुख्यमंत्री ने बहुत ही गंभीरता पूर्वक निजी विद्यालयों की समस्याओं को सुना तथा उन्होंने आश्वस्त किया कि निश्चित रूप से निजी विद्यालयों को राहत दी जाएगी और निजी विद्यालयों को इस विषय पर चिंतित रहने की आवश्यकता नहीं है।
आलोक दूबे ने कहा भाजपा सरकार द्वारा 2019 में संशोधित आरटीई कानून को अगर निरस्त नहीं किया गया तो राज्य के 40 हजार निजी विद्यालय बन्द हो जाऐंगे। मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर कहा कि संशोधित कानून निरस्त किए जाऐंगे। प्रतिनिधि मंडल ने निजी विद्यालयों से संबंधित समस्याओं को बयान करते हुए बताया कि प्राइवेट स्कूल्स एण्ड चिल्ड्रेन वेलफेयर एसोसिएशन पासवा झारखंड के 40000 छोटे निजी विद्यालय जो बहुत ही मामूली फीस में झारखंड के लाखों आदिवासी, गरीब, दलित, और सामान्य घरों के बच्चों को गुणात्मक शिक्षा दे रहा है ; तथा यदि एक निजी विद्यालय मात्र 15 लोगों को रोजगार अवसर प्रदान करता है तो 40 हजार निजी विद्यालयों शैक्षणिक और गैर शैक्षणिक कर्मी के रूप में 6 लाख लोगों को प्रत्यक्ष रोजगार दे रहे हैं , और यदि उस पर आधारित रिक्शावाला, टेंपो वाले ,ठेला वाले ,चाट गुपचुप बेचने वाले, लोगों को जोड़ा जाए तो करीब दो लाख लोगों को परोक्ष रोजगार दे रहे हैं ,उन निजी विद्यालयों की निम्नलिखित समस्याओं पर आपका ध्यान आकृष्ट कराना चाहता है।*महत्वपूर्ण बिंदु* संपूर्ण राष्ट्र में विद्यालय के संचालन के लिए 2009 में केंद्र सरकार ने एक कानून बनाया आटीई (शिक्षा का अधिकार) जिस कानून से पूरे देश के विद्यालय संचालित होते हैं और आज भी संचालित हो रहे हैं, 2019 में रघुवर दास की (भाजपा) सरकार ने आरटीई के कानून में संशोधन किया और कठोर शर्त लगाए।
जिसके तहत मिडिल स्कूल या मध्य विद्यालय में शहरी क्षेत्र में 75 डिसमिल तथा ग्रामीण क्षेत्र में एक एकड़ जमीन होगा तभी ऐसी मान्यता मिलेगी जिससे स्कूल का संचालन हो सके, प्राथमिक विद्यालय के लिए 40 डिसमिल शहरी क्षेत्र में तथा ग्रामीण क्षेत्र में 60 डिसमिल जमीन की अनिवार्यता की गई।नोट: जबकि झारखण्ड में आरटीई 2019 के कानून के कारण पूरे राष्ट्र से अलग मान्यता की शर्तें हैं, विद्यालय के नाम से 1 लाख का फिक्स्ड डिपॉजिट तथा निरीक्षण शुल्क 25 हजार रुपए लिए गये हैं, विद्यालय के कमरे का साइज 18 / 22 होना अनिवार्य है, भवन का नक्शा सक्षम पदाधिकारी से पास होना चाहिए।निजी स्कूलों को अग्निशामक क्लीयरेंस सर्टिफिकेट उपलब्ध कराना है।जबकि मूल आरटीई में इस तरह की कोई शर्त नहीं है।
*क्या होना चाहिए* पिछली सरकार द्वारा आरटीई 2019 का संशोधन रद्द होना चाहिए, जिस तरह संपूर्ण राष्ट्र में स्कूल चल रहे हैं उसी तरह झारखंड में भी विद्यालय चलने की अनुमति देनी चाहिए, पूर्व से ही विद्यालयों को यू डाइस नंबर प्राप्त है जिसके आधार पर विद्यालय संचालित हैं और सरकार के द्वारा यू डाइस नंबर भी आवंटित किया गया है तो विद्यालय उसी यू डाइस नंबर से चलते रहने की अनुमति दी जानी चाहिए, विद्यालय की मान्यता के लिए 2013 से ही आवेदन लिए जा रहे हैं,पुनः बार बार मान्यता के लिए आवेदन देकर स्कूलों को बंद करने की चेतावनी नहीं देनी चाहिए, प्राइवेट और सरकारी विद्यालय दोनों के लिए एक ही कानून होनी चाहिए,जिस प्रकार सरकारी स्कूल चल रहे हैं उसी प्रकार से प्राइवेट स्कूलों को भी संचालित करने की मान्यता प्राप्त होनी चाहिए, 2009 में पारित आरटीई कानून प्राइवेट और सरकारी दोनों विद्यालयों के लिए हैं तो फिर एक ही कानून प्राइवेट और सरकारी दोनों विद्यालयों पर लागू होनी चाहिए, जमीन की बाध्यता हर स्थिति में समाप्त होनी चाहिए अन्यथा बंद हो जाएंगे 40,000 विद्यालय और लाखों लोग हो जाएंगे बेरोजगार, अधिकांश विद्यालयों को यू डाइस पोर्टल प्राप्त है और यदि किसी विद्यालयों को प्राप्त नहीं है तो उनके लिए यू डाइस पोर्टल की व्यवस्था की जानी चाहिए, आरटीई 2009 के संशोधित कानून पर माननीय उच्च न्यायालय में रिट याचिका भी दायर है और उस पर मान्यता के प्रश्न पर उच्च न्यायालय द्वारा स्टे लगाया गया है (2019 में ही) तथा विद्यालयों को मान्यता संबंधी किसी भी प्रश्न पर किसी भी तरह का पीड़क कार्रवाई करने से माननीय उच्च न्यायालय द्वारा रोक लगाया गया है, गैर मान्यता प्राप्त 40000 विद्यालयों में गरीब,आदिवासी, सामान्य वर्ग, रेवड़ी, सब्जी बेचने वाले, टेंपो चालक, ठेला चालक, फुचका बेचने वाले सामान्य लोगों के बच्चे पढ़ते हैं, विद्यालयों की फीस बहुत मामूली होती है ₹100 से लेकर 200 ₹300 तक मात्र फीस लिए जाते हैं,गरीब अभिभावक कई बार पैसे भी नहीं देते हैं,इस तरह के आदेश से लाखों बच्चों का भविष्य अंधकार में हो जाएगा, यह कहां का इंसाफ है कि सरकारी स्कूल दो कमरे में चलेंगे और निजी स्कूलों के लिए हजारों नियम लागू किए जाएंगे, सरकारी स्कूलों का शौचालय एक तो रहता नहीं है और अगर है भी तो उसकी हालत यह है कि यदि उसमें प्रवेश कर गए तो बीमारी निश्चित है, फायर क्लीयरेंस लेना एक ऐसा कठिन शर्त है जिसमें लगभग 6 से 7 लाख रुपया लगेगा।अतः अग्निशमन का सामग्री तो रखा जा सकता है किंतु फायर क्लीयरेंस लेना तो बड़े से बड़े विद्यालय के लिए भी संभव नहीं है, मिडिल स्कूल में पढ़ाने वाले एक शिक्षक की तनख्वाह 80000 तक है जबकि यही काम निजी विद्यालयों के शिक्षक बहुत ही कम पैसे में गुणात्मक शिक्षा दे रहे हैं,तथा अच्छे रिजल्ट के द्वारा राज्य का नाम ऊंचा कर रहे हैं और बाल बेरोजगारी से भी राज्य को बचा रहे हैं, 2019 आरटीई में हुए संशोधन के अनुसार सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट लगे हुए जमीन में भी 30 वर्षों के लिए स्कूल के नाम पर लीज मांगी गई है जो कभी संभव नहीं है क्योंकि ऐसे जमीन केवल 5 वर्षों के लिए ही लीज के लिए उपलब्ध हो सकते हैं। इससे आदिवासी वर्ग के स्कूल संचालक अपना स्कूल संचालन नहीं कर पाएंगे। अतः सरकार इन बिंदुओं पर सहानुभूति पूर्वक विचार करे। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने बहुत ही गंभीरता पूर्वक निजी विद्यालयों की समस्याओं को सुना तथा उन्होंने आश्वस्त किया कि निश्चित रूप से निजी विद्यालयों को राहत दी जाएगी और निजी विद्यालयों को इस विषय पर चिंतित रहने की आवश्यकता नहीं है। मुख्यमंत्री ने साफ तौर पर कहा कि संशोधित कानून निरस्त किए जाएंगे।पासवा के प्रतिनिधि मंडल ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को अंग वस्त्र तथा मोमेंटो देकर सम्मानित किया।प्रतिनिधिमंडल में बिपीन कुमार, फलक फातिमा, डॉ सुषमा केरकेट्टा,नीरज कुमार,संजय प्रसाद, आलोक बिपीन टोप्पो,राशीद अंसारी, प्रवीण प्रकाश,मेघाली सेन गुप्ता, अल्ताफ अंसारी, मींकू कुमार,नेसार अंसारी, राहुल कुमार, मेंहुल दूबे मुख्य रुप से उपस्थित थे।