झारखंड राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ. कल्याणी शरण ‘बेघर’ हैं। उनके पास पैसे भी नहीं हैं। वह इतनी गरीब हैं कि उन्हें लगता है कि सरकार को उन्हें ‘बेघरों को घर’ योजना का पात्र मानना चाहिए। लिहाजा, उन्होंने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत घर के लिए आवेदन किया है। वह चाहती हैं कि इस योजना के लाभार्थियों की अगली सूची में उनका भी नाम हो। ताकि, उन्हें भी छत नसीब हो सके।
अब प्रशासनिक अमले को तय करना है कि वह इस योजना के तहत लाभ की पात्र हैं या नहीं। फिलहाल ‘गरीबी’ का उनका दावा फाइलों में है, जिस पर विचार किया जाना बाकी है। बहरहाल, उनके इस दावे से सियासी हलचल खड़ी हो गई और वह विवादों में घिर गई हैं। यह सवाल चर्चा में है कि सालाना करीब नौ लाख रुपये की तनख्वाह की हकदार महिला आयोग की अध्यक्ष को यह दावा करते वक्त अपनी गरिमा का ख्याल क्यों नहीं आया।
दरअसल, हाल ही में उन्होंने यह आवेदन चुपके से दिया था, ताकि किसी को पता नहीं चले। यह बात गोपनीय भी रह जाती, अगर जमशेदपुर के अधिसूचित क्षेत्रीय कार्यालय (अक्षेस) से उनके आवेदन की बात मीडिया को लीक नहीं होती। लेकिन, वहां के कुछ कर्मचारियों-अधिकारियों ने यह बात लीक कर दी। लोग जान गए कि डॉ. कल्याणी शरण ने प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान के लिए आवेदन किया है। उसके बाद से ही वह विवादों में हैं और अपने बचाव में उन्होंने हास्यास्पद तर्क दिए हैं। वह अपने ‘गरीब’ होने के दावे पर अडिग हैं।
राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष होने के नाते महत्वपूर्ण संवैधानिक दायित्वों का निर्वहन करने वाली डॉ. कल्याणी शरण कहती हैं कि वह गरीब हैं। सरकार उन्हें वेतन नहीं दे रही और वह उधार के पैसे से पूरे राज्य का दौरा करती रहती हैं। उन्होंने 5 जून 2017 को महिला आयोग के अध्यक्ष का पदभार लिया था।
डॉ. कल्याणी शरण की नियुक्ति झारखंड की मौजूदा रघुवर दास सरकार ने की थी। उन्होंने बताया कि नियुक्ति के बाद से आज तक उन्हें वेतन नहीं मिला। यह मामला तकनीकी पेंच में फंसा हुआ है। ऐसे में वह गंभीर आर्थिक संकट में हैं और इस कारण प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मकान की पात्र भी।
बकौल डॉ. कल्याणी शरण, “बेटा-बहू का क्या भरोसा। कब घर से निकाल दें। आज पावर है, तो सब पूछ रहे हैं। कल पावर खत्म हो गया, तब क्या हालत होगी। आज की दुनिया में किसी का भरोसा नहीं, मैं बुढ़ापे को लेकर चिंतित हूं। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवेदन में कुछ भी गलत नहीं है, क्योंकि मेरे सिर पर अपनी छत नहीं।”
कल्याणी शंकर आगे कहती हैं, “मैं बेघर हूं और जमशेदपुर के टेल्को इलाके में किराये के एक फ्लैट में अपने पति के साथ रहती हूं। मैंने उनके पैसे पर ही सारे सामाजिक काम किए हैं, लेकिन अगर वह कल बेटे-बहू के चक्कर में आकर मुझे पूछना बंद कर दें, तो मैं कहीं की नहीं रहूंगी। सरकार की योजना का लाभ उठाने का अधिकार एक महिला के नाते मुझे भी है। इसलिए मैंने यह आवेदन किया है। इसको लेकर विवाद नहीं होना चाहिए।”
इस मामले पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता आदित्य विक्रम जायसवाल ने कहा कि अब महिला आयोग की अध्यक्ष को भी प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आवेदन करना पड़ रहा है, तो समझ सकते हैं कि योजनाओं में कैसे गड़बड़ी हो रही है। सरकार को अपना पक्ष रखना चाहिए और बताना चाहिए कि महिला आयोग और दूसरे आयोगों के अध्यक्षों को वेतन क्यों नहीं मिल रहा है।
पीएम आवास योजना उन गरीबों के लिए बनाई गई थी, जिनके पास अपना मकान नहीं है। इसकी शुरुआत के वक्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत में कोई व्यक्ति सिर्फ इस कारण बेघर नहीं रह सकता कि वह गरीब है। उसके पास मकान बनवाने के पैसे नहीं हैं। इसके लिए सालाना चार लाख रुपये तक की आमदनी वाले लोग पात्र हैं। बशर्ते, उनके नाम पर पहले से कोई पक्का मकान न हो।
यह योजना दो स्तरों पर शुरू की गई थी। इसमें ग्रामीण इलाको में घर की पात्रता अलग है और शहरी इलाकों के लिए कुछ अलग। महिला आयोग की अध्यक्ष ने शहरी इलाके में मकान के लिए आवेदन किया है। आवेदन करने के लिए वह अपने पति के साथ जमशेदपुर के अक्षेस कार्यालय में गई थीं।
हालांकि, वहां के विशेष कार्य पदाधिकारी ने इस बाबत सिर्फ इतना कहा कि अभी इन आवेदनों की जांच बाकी है। किसी के आवेदन का मतलब यह नहीं हुआ कि उन्हें इसका लाभ मिल ही जाएगा।
(रवि प्रकाश)