बिजली,पानी जैसी मूलभूत सुविधाओं का राजनीतिक जिन्न आज बाहर निकल आई
आखिर क्यों,बेवक्त उनकी याद आई,क्यों बिजली पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं भी सत्ता सुख भोगने के साढ़े चार वर्ष बाद आंदोलन क्यों होने को आई
संवाददाता: टंडवा,चतरा
राजनीति की सियासत में कब किसे और क्यों याद आ जाए, इसका अंदाजा लगाया नहीं जा सकता है। जब राजनीतिक हित और लाभ साधने की बात हो तो आंदोलन का रूप जन आंदोलन बनाने की कोशिश की जाती है। झारखंड के चतरा जिला में कुछ ऐसा ही मामला सामने आने लगा है। हालांकि 6 मार्च 1999 को तत्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने एनटीपीसी के लिए आधारशिला चतरा जिला के टंडवा में रखी थी और तकरीबन तीन दशक के लंबे संघर्ष के बाद वर्ष 2023 में एनटीपीसी टंडवा से बिजली का निर्बाध उत्पादन शुरू हो गया।साथ ही टंडवा में सीसीएल के मगध, अम्रपाली,पिपरवार, अशोका जैसे कई अन्य कोल परियोजनाएं हैं ।मतलब की टंडवा क्षेत्र से कोयले का खनन और परिवहन होकर देश के दूसरे राज्य रौशन हो रहा हैं। लेकिन *चिराग तले अंधेरा* वाली मुहाबरा यहां सटीक और सही टंडवा के लोगों पर बिल्कुल फिट बैठता है। दरअसल यह मामला पुराना नहीं तो नया भी नहीं है ।यदि कोई सत्ता में विराजमान बैठे लोग इसे हल ही नहीं करना चाहते तो जनता सब समझते हैं और आने वाले समय में जनता वक्त पर हिसाब जरूर लेगी। इतना तो साफ है कि टंडवा में बिजली की समस्या आज नया तो नहीं है। ऐसा नहीं यह अचानक समस्या वर्ष 2024 में उभर कर सामने आया हो, ऐसी बात तो बिलकुल नहीं है।हालांकि चुनावी वर्ष 2024 है।विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और राजनेताओं को अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए जनता के खून की तपिश को अंगारे के रूप में खेलना चाहता है। शाम के तपती गर्मी में दिखाना होता है और इसीलिए उसे चिराग लेकर बिजली की मांगों पर लेकर मशाल लेकर अंधेर नगरी में घुमाया जा रहा है।ताकि राजनीतिक धाह में राजनिति रोटियां आराम से सेकी जा सके और फिर सत्ता के शीर्ष तक पहुंच कर आने वाले 5 वर्षों तक सुख शांति और समृद्धि के साथ जीवन का अनुभव और आनंद लेते रहे। टंडवा में बिजली, पानी और सड़क की मांग को लेकर फैली तरानाओं में यह बात तो सामने है कि आम आवाम इससे बहुत खुश नहीं है, क्योंकि उन्हें पता है यदि यही हरकत राजनेताओं के द्वारा वर्ष 2019 से ही किया जाता तो अब तक यह समस्या पर पूर्ण विराम लग चुका होता।मतलब कि टंडवा के लोगों को बिजली और पानी मुहैया हो जाता।लेकिन राजनेताओं को तो अपनी रोटियां सेकना है।धधकती धरती और धूलकण से प्रभावित इंसान के खराब फेफड़ों की गंध पर राजनीति का फसल बोना होता है ।इसीलिए इन मुद्दों को पिछले साढ़े चार वर्षों तक ठंडा बस्ती में रखा गया था और एक बिजली पानी जैसे मूलभूत समस्याएं को लेकर आज एक मशाल जुलूस निकालकर जनता का हितैषी बनने का नायाब कोशिश की जा रही है ।लेकिन पब्लिक है भाई सब जानती है। लेकिन आने वाले समय में पब्लिक पांच वर्ष का हिसाब किताब अपने हाथों में साजो कर रखें है। इन्ही हाथों से हिसाब भी लेंगे और हिसाब भी चुकता करेंगे। चिट्ठी आई है आई है चिट्ठी आई है बहुत दिनों के बाद हम कम्बख्तो को याद टंडवा खुशीयाली की याद आई है। चिट्ठी आई है आई है चुनाव की आई है।