सरकारी चपरासी से भी कम वेतन है सरकारी विद्यालयों में 15/20 वर्षों कार्यरत सहायक अध्यापकों का
गणेश झा / पाकुड़
आज जहां इस महगाई में झारखण्ड के अन्य सरकारी कर्मी डी ए, महंगाई भत्ता के साथ पेंशन की भी घोषणा हेमन्त सरकार ने की है, वहीं 15/20 वर्षों के सुदूर ग्रामीण इलाकों में शिक्षा की अलख जगाने का कार्य पारा शिक्षक जिनका वर्तमान नाम सहायक अध्यापक तो हेमन्त सोरेन ने दे दी है परन्तु उसे किसी भी प्रकार का लाभ नहीं दिया जा रहा है।आज झारखण्ड में 65000 सहायक अध्यापक कार्यरत हैं उसमे 13000 टेट उत्तीर्ण सहायक अध्यापक हैं जो सरकारी शिक्षक बनने का पूर्ण अहर्ता रखते हैं, उन्हे भी सरकार कोई लाभ नहीं दे रही है जबकि इसके पूर्व की सरकार में इन्हीं लोग के बीच से हजारों साथियों को सरकारी शिक्षक बनाया गया है जो 9300 से 34200 के स्केल का लाभ ले रहें है, और आज जो झारखण्ड सरकार शिक्षक के बदले सहायक आचार्य बनाने जा रही है उसका 5200 से 20200 का स्केल है, उसके लिए भी 7 -7 घंटे परीक्षा देकर सहायक आचार्य बनना होगा, जबकि ये बेचारे पूर्व से कार्यरत हैं, यदि उसमें भी इन टेट पास सहायक अध्यापक का समायोजन कर दिया जाय तो इस मंहगाई में ये बेचारे अपने परिवार का ठीक से भरन पोषण कर सकेंगे, याद रहे की रघुवर सरकार में जो हाई स्कूल शिक्षक की बहाली की गई है उसमें भी अधिकतर शिक्षक टेट उत्तीर्ण नहीं कर पाए हैं परन्तु जिला स्तरीय बहाली में वे हाई स्कूल के शिक्षक बन गए हैं परन्तु इन सहायक अध्यापक को आज तक सरकारी शिक्षक नहीं बनाया गया है। अब सवाल ये उठता है की जिन शिक्षकों को अपने परिवार के पेट की चिंता होगी वे कितना शिक्षा दे पाएंगे, जबकि बच्चे की नीव मजबूत होगी तभी बच्चे आगे जाकर कुछ कर पाएंगे और बच्चे की नीव इन्हीं शिक्षकों द्वारा तैयार की जाती है, आज इनके पढ़ाए बच्चे शिक्षक, पुलिस,सेना,जनसेवक,डॉक्टर, इंजीनियर बन गए हैं और ये बेचारे अभी भी अपने परिवार के भरन पोषण की चिंता में डूबे रहते हैं। सरकार को चाहिए जो भी शिक्षक की आहर्ता रखते हैं उन्हे सम्मान देते हुए वर्तमान सहायक आचार्य में समायोजित कर दे ताकि ये शिक्षक परिवार की चिंता छोड़कर बच्चों के भविष्य निर्माण करने का काम कर सके।