भारत में पिछले कुछ सालो में आरएसएस यानि राष्ट्रीय स्वय सेवक संघ का प्रभाव बढ़ा है पर क्या यह महज संयोग है कि इसके साथ बीजेपी ने अपना दायरा बढ़ा लिया है. संघ से जुड़े लोग कहते हैं कि बेशक बीजेपी वैचारिक रूप से उनके करीब है पर बीजेपी का अपना असर है. वहीं कुछ विश्लेषक कहते हैं दक्षिण पंथ का यह विस्तार देश की विविधता के लिए चिंता की बात है.
संघ की एक रिपोर्ट के अनुसार देश में 59 हज़ार शाखाएं संचालित की जा रही हैं. शाखा के ज़रिये प्रतिदिन संघ के सदस्य एकत्रित होते हैं. राजस्थान में संघ से जुड़ी पत्रिका के संपादक के.एल चतुर्वेदी कहते हैं कि देश में खंड और मंडल स्तर तक संघ की उपस्थिति है.
क्या बीजेपी का यह बढ़ता प्रभाव संघ की देन है? इस पर चतुर्वेदी कहते हैं, ”ऐसा नहीं है, बीजेपी का अपना अस्तित्व है. यह ज़रूर है कि बीजेपी विचार के स्तर पर उनके नज़दीक है. उसका अपना संगठन और शक्ति है.”
हालांकि चतुर्वेदी यह ज़रूर मानते हैं कि कि चुनाव में स्वयं सेवकों के प्रयासों का लाभ बीजेपी को मिलता है क्योंकि वैचारिक रूप से वो निकट हैं. चतुर्वेदी के अनुसार हाल के चुनावो में मध्य प्रदेश और राजस्थान में अधिक मतदान का कारण स्वयं सेवकों की सक्रियता रही.
आरएसएस ने पिछले कुछ समय में मीडिया ,जनसंपर्क और प्रचार पर खासा ध्यान दिया है. इसके तहत समाज के प्रमुख लोगों से संपर्क के लिए कॉफ़ी-टेबल बुक जैसे कार्यक्रमों का सहारा लिया है.
उज्जैन ,पटना और भाग्य नगर में ब्लॉगर्स और स्तंभ लेखकों के साथ बैठक की, इसमें 225 स्तंभ लेखक शामिल हुए. संघ ने नारद मुनि को पत्रकारिता से जोड़ दिया और विगत दो सालो में नारद जयंती पर अलग अगल जगह कर्यक्रम कर 2000 से ज़्यादा पत्रकारों को सम्मानित किया.
संघ की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली, जयपुर और भुवनेश्वर में सोशल मीडिया कॉनक्लेव आयोजित किया गया. इसमें सोशल मीडिया में सक्रिय हज़ार से अधिक लोगों ने शिकरत की.
आरएसएस अभी 12 भाषाओ में 30 पत्रिकाएं प्रकाशित कर नियमित रूप से दो लाख गावों तक भेज रहा है. हरियाणा में इन पत्रिकाओं को पहुंचाने वाले 572 डाकियों का सम्मान किया गया.
संघ ने अपने हिसाब से देश में 43 प्रांत बनाए हैं. इसमें शामिल बंगाल को उत्तर और दक्षिण बंग में बांटा गया है. बीते वर्ष संघ ने इन दोनों हिस्सों में धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम के जरिए अपनी मौजूदगी बढ़ाने का प्रयास किया है. संघ की रिपोर्ट के अनुसार बंगाल में 32 स्थानों पर रामनवमी की शोभा यात्रा निकाली गई.
लोक सभा चुनाव में कांग्रेस ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को संघ का प्रधानमंत्री बता कर वार किया पर क्या कांग्रेस भी अपना वैचारिक आधार बढ़ाने के लिए कोई प्रयास कर रही है?
राजस्थान में कांग्रेस की चुनाव अभियान समिति के प्रमुख और चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा ने कहा, ”हम अपने कार्यकर्ताओं को आज़ादी की लड़ाई , इतिहास, विचार और अपने नायकों के जीवन चरित के बारे में प्रशिक्षित करते रहते हैं. हम बीजेपी और प्रधानमंत्री के दोहरे मापदंड और झूठ के बारे में भी कार्यकर्ताओं को जानकारी देते रहते हैं.”
शर्मा कहते हैं, ”कांग्रेस के पास एक से बढ़ कर एक विचारशील लोग हैं, कांग्रेस एक आंदोलन है ,यह पार्टी 130 साल से काम कर रही है. हमारी पहुंच हर गांव ढाणी तक है, बीजेपी की ऐसी पहुंच नहीं है.”
आरएसएस ने अपने सांगठनिक लिहाज़ से राजस्थान को तीन प्रांतो में बाँट रखा है. इसमें आदिवासी बहुल मेवाड़ को चित्तौड़ प्रान्त के साथ जोड़ा गया है.
मेवाड़ कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है. शुरुआती दौर में कांग्रेस ने आदिवासियों के बीच शिक्षा ,रोज़गार और चेतना के लिए काफी काम किया था. लेकिन बाद में यह कांग्रेस के हाथ से फिसलता चला गया.
यही वक़्त था जब समाजवादी नेता मामा बालेश्वरदयाल आदिवासी समाज में सबसे प्रभावशाली होकर उभरे. उनके जीते जी कांग्रेस और बीजेपी डूंगरपुर और बांसवाड़ा जैसे ज़िलों में कामयाब नहीं हो पाई.
लेकिन दो दशक पहले उनके निधन के बाद बीजेपी ने जगह बना ली. समाजवादी नेता अर्जुन देथा कहते हैं, ”मामाजी की विरासत तीन हिस्सों में बिखर गई.”
वे बताते हैं, ”एक हिस्सा बीजेपी और कांग्रेस के साथ चला गया ,दूसरा हिस्सा नई उभरी ट्राइबल पार्टी ने समेट लिया और तीसरा भाग अभी अपना मुकाम तलाश रहा है.”
देथा के मुताबिक कांग्रेस ने पिछले कुछ सालो में इस क्षेत्र में वैचारिक और सांगठनिक काम नहीं किया,लिहाज़ा वो कमज़ोर होती चली गई.
विश्लेषक कहते हैं कि मेवाड़ में आरएसएस से जुड़ी वनवासी कल्याण परिषद ने 40 साल पहले काम शुरू किया और अब अपनी जड़ें जमा लीं. इसका लाभ बीजेपी को मिला है.
परिषद इस क्षेत्र में 335 सेवा केंद्र चलाती है. इसमें 16 वनवासी बोर्डिंग स्कूल, 17 प्राथमिक ,छह माध्यमिक और सेकेंडरी स्कूल, 108 एकल शिक्षक स्कूल और 179 बाल संस्कार केंद्र शमिल हैं. परिषद ने 117 ग्राम स्वास्थ्य केंद्र और 115 स्पोर्ट्स सेंटर भी चला रखे हैं.
समाज शास्त्री डॉ राजीव गुप्ता कहते हैं, ”इन दक्षिणपंथी संगठनों का बढ़ता प्रभाव भारत के बहुलता और विविधता वाले समाज के लिए चिंता की बात है क्योंकि यह एक ख़ास किस्म का संकीर्ण और रूढ़िवादी मनो-मष्तिस्क तैयार करते हैं जो चीजों को बहुत संकीर्ण और रूढ़िवादी नज़र से तलाश करने की कोशिश करेगा.”
राजीव गुप्ता कहते हैं, ”यह भारत में विकास की दृष्टि से बहुत बड़ा धक्का होगा, क्योंकि भारतीय समाज बहुलता और विविधता मूलक है. यही वजह है कि एक बिंदु के बाद समाज दक्षिणपंथी उभार की इस प्रकिया को स्वीकार करने से इंकार कर देगा.”
(बीबीसी से साभार)