विशेष संवाददाता द्वारा
राँची दिनांक 8 मार्च 2022 को ‘विश्व महिला दिवस’ के उपलक्ष्य पर सखुआ की टीम ने एक अहम मुद्दे पर फेसबुक लाइव किया। जिसका विषय था ‘क्या भारत में सशक्त आदिवासी महिलाओं को बढ़ने का मिलता है पूरा मौका?’
इस डिस्कशन में राजस्थान से लेखिका ‘सुनीता घोगरा’, मेघालय से नार्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी की शोद्यार्थी ‘डायाफिरा खरसती’, झारखंड से कवयित्री ‘सरिता बड़ाईक’ और सोशल मीडिया एक्टिविस्ट ‘नीलम सम्ब्रुई’ ने आदिवासी महिला पक्ष में अहम बातें रखीं।
बातचीत के दौरान झारखंड में लंबे समय से आदिवासी महिलाओं पर कविता लिखने वाली सरिता बड़ाईक कहती हैं “बचपन से लेकर बड़े होने तक एक आदिवासी लड़की सामाजिक और पारिवारिक रूप से बहुत सी प्रताड़नाएं झेलती है। इसके बावजूद वो अपने घर परिवार को संभाले हुए है। ऐसी कोई जगह नहीं है जहां उसे अपने आदिवासी होने कि वजह से पीछे धकेला न गया हो पर अब वक्त आ गया है कि आदिवासी महिलायें अपने अधिकारों के लिए लड़े और अपने सम्मान के लिए आवाज़ बुलंद करें।”
वहीं नीलम सम्ब्रुई ने कहा ‘अगर इस देश में आदिवासी महिलाएं आगे नहीं बढ़ पा रही हैं तो इसमें बहुत बड़ा हाथ हमारी शिक्षा व्यवस्था का है। स्कूल में पढ़ाई जाने वाली किताबों से आदिवासी वीरांगनाओं का इतिहास पढ़ाया ही नहीं जाता जिसकी वजह से न लोग आदिवासी समाज को समझ पाते हैं और न ही आदिवासी समुदाय की के लोग अपने इतिहास पर गर्व कर पाते हैं। हमें ज़रूरत है कि आदिवासी समाज का इतिहास स्कूलों में पढ़ाई जाने वाली किताबों का हिस्सा बनें।’
राजस्थान की लेखिका सुनीता घोगरा ने कहा “आदिवासी महिलाओं की एकता के लिए हमें एकजुट होने की ज़रूरत है, हमें सखुआ के साथ मिल कर या सखुआ जैसा एक ऐसा प्लेटफार्म बनाने की ज़रूरत है जहां आदिवासी महिलाएं अपनी बात रख सके और सरकार उस पर गौर फरमाएं।”
इसके अलावा इस डिस्कशन में आदिवासी महिलाओं की शिक्षा व्यवस्था, आर्थिक मज़बूती और आदिवासी महिलाओं की राजनीति जैसे अहम मुद्दों पर भी बात हुई।
डिस्कशन के अंत में मेघालय से जुड़ी नार्थ ईस्टर्न यूनिवर्सिटी की शोद्यार्थी ‘डायाफिरा खरसती’ सखुआ की तारीफ करते हुए कहती हैं कि “ऐसा पहली बार हुआ है कि एक ही मंच पर नार्थ इंडिया और नार्थ ईस्ट इंडिया की आदिवासी महिलाएं जुड़ पाई हैं और सखुआ पूरे भारत में सभी आदिवासी महिलाओं को जोड़ने का काम कर रहा है वो काबिले तारीफ है।”
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