News Agency : दिल्ली की सत्ता में फिर से वापसी की लड़ाई लड़ रहे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को इस बार अपने ही गृह राज्य गुजरात में कड़े मुकाबले का सामना करना पड़ रहा है। कांग्रेस कई सीटों पर बीजेपी को कड़ी टक्कर दे रही है। 2014 के पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश की सभी twenty six सीटों पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस का प्रदेश में खाता तक नहीं खुल पाया था। इस बार twenty three अप्रैल को गुजरात की सभी twenty six लोकसभा सीटों पर एक साथ चुनाव होंगे।
2014 में नरेन्द्र मोदी बीजेपी की तरफ से प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार थे। गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर उन्होने उत्तर प्रदेश की वाराणसी लोकसभा सीट के साथ-साथ गुजरात के वड़ोदरा से भी लोकसभा का चुनाव लड़ा था। उस समय मोदी का पसंदीदा नारा गुजराती गौरव अपने चरम पर था। एक गुजराती देश का प्रधानमंत्री बनने जा रहा है। इस भावना ने पूरे गुजरात को एक कर दिया और नतीजा कांग्रेस शून्य पर आ गई। हालत यह हो गई कि पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी के बेटे भरत सिंह सोलंकी जैसे कद्दावर नेता भी पार्टी की सबसे मजबूत और सुरक्षित सीट आनंद से चुनाव हार गए। यही हाल कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं का हुआ। लेकिन प्रदेश में 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी के खेमे में खलबली मचा दी। उन्हे यह समझ आ गया कि भले ही नरेन्द्र मोदी गुजरात के सबसे लोकप्रिय नेता हो लेकिन 2014 के नतीजों को दोहराने के लिए कुछ और भी करना होगा।
पार्टी ने अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को पहली बार लोकसभा चुनाव के मैदान में उतारने का फैसला किया और उन्हे लाल कृष्ण आडवाणी की जगह गांधीनगर लोकसभा सीट से उम्मीदवार बनाया गया। मकसद गुजरात के मतदाताओं को संदेश देना था कि आज भी मोदी-शाह के लिए गुजरात और गुजराती गौरव सर्वोच्च प्राथमिकता है। 2017 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से सबक लेकर बीजेपी ने इस बार लाल कृष्ण आडवाणी जैसे दिग्गज नेताओं के साथ-साथ पार्टी के कई पुराने और दबंग सांसदों के भी टिकट काट दिये। आडवाणी और परेश रावल सहित ten वर्तमान सांसदों की जगह इस बार पार्टी ने नए चेहरों को मैदान में उतारा। बीजेपी को लगता है कि वर्तमान सांसदों के टिकट काटकर मतदाताओं की नाराजगी को दूर किया जा सकता है और लोगों को मोदी की लोकप्रियता के नाम पर बीजेपी के पक्ष में वोट करने के लिए लुभाया जा सकता है।
वैसे तो कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में देशभर में करारी हार का सामना करना पड़ा था लेकिन गुजरात जो कभी उसका गढ़ हुआ करता था वहां एक भी सीट न जीत पाने का मलाल कांग्रेस आलाकमान को जरूर था। इसलिए कांग्रेस ने 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव की तैयारी काफी पहले और जोर-शोर से शुरु कर दी थी। हार्दिक, जिग्नेश और अल्पेश जैसे युवा नेताओं ने भी कांग्रेस की रणनीति को धार दिया। नतीजा जिस कांग्रेस को 2014 लोकसभा चुनाव में राज्य में बीजेपी के fifty nine फीसदी की तुलना में केवल thirty three फीसदी वोट हासिल हुआ था उसे 2017 के विधानसभा चुनाव में लगभग forty two फीसदी वोटों के साथ seventy seven विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई।
2014 में बीजेपी और कांग्रेस के बीच twenty six फीसदी वोटों का अंतर था जो 2017 में घटकर सिर्फ seven फीसदी रह गया। बीजेपी ने चार वर्तमान विधायकों के अलावा half-dozen नए चेहरों को मैदान में उतारा है। जबकि कांग्रेस ने eight मौजूदा विधायकों को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया है। दोनो ही दलों ने जातीय समीकरण को भी साधने का प्रयास किया है। बीजेपी और कांग्रेस दोनो ने सबसे ज्यादा 9-9 टिकट ओबीसी को दिया है। इसके अलावा बीजेपी ने half-dozen पाटीदार, 5 आदिवासी, a pair of दलित और एक बनिया को टिकट दिया है वहीं कांग्रेस ने eight पाटीदार, 5 आदिवासी, 2 दलित, एक बनिया और एक मुस्लिम को चुनावी मैदान में उतारा है। 1984 के बाद पहली बार कांग्रेस ने गुजरात में किसी मुस्लिम को लोकसभा का उम्मीदवार बनाया है।
कांग्रेस ने पाटीदार आंदोलन से उभरे कई नए चेहरों को भी चुनावी मैदान में उतारकर बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा दी है। हालांकि प्रदेश के बड़े आदिवासी नेता छोटू बसावा की नाराजगी, अल्पेश के कांग्रेस छोड़ने, जिग्नेश के गुजरात से ज्यादा बिहार में समय देने और हार्दिक के चुनाव नहीं लड़ने की वजह से कांग्रेस की मुश्किलें भी बढ़ गई है। कांग्रेस को इस बात का बखूबी अहसास है कि नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता से पार पाना आसान नहीं है इसलिए कांग्रेस भले ही सभी twenty six सीटों पर मजबूती से लड़ने की बात कह रही हो लेकिन कांग्रेस के दिग्गज नेता आपसी बातचीत में यह मान रहे हैं कि वो आनंद, अमरेली, छोटा उदयपुर, बनासकांठा, जूनागढ़, मेहसाणा और पोरबंदर जैसे 10-12 चुनिंदा सीटों पर ही ज्यादा मेहनत कर रहे हैं क्योंकि इनमें से कुछ सीटें भी अगर वो जीत जाते हैं तो यह मोदी-शाह की जोड़ी के लिए झटका तो होगा ही वहीं बीजेपी को नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता, अमित शाह की रणनीति और गुजराती गौरव के नारे पर आज भी पूरा भरोसा है।