लोकसभा चुनाव के महासमर के एलान के साथ ही अखाड़े सजने लगे हैं, किंतु महागठबंधन के घटक दलों की अभी तक हिस्सेदारी तय नहीं हो सकी है। घटक दलों में सीटों को लेकर खींचतान जारी है। ऐसे में आगे की राह आसान नहीं दिख रही है।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) 20 सीटों से कम पर तैयार नहीं है। कांग्रेस को भी फ्रंटफुट पर खेलने का मंत्र मिल चुका है। इसके लिए उसे भी कम से कम 15 सीटें चाहिए। दोनों बड़े दल अपने-अपने दावों पर अड़े हैं। ऐसे में छोटे सहयोगी दल चौराहे पर खड़े हैं। दिल्ली-रांची के दौरे भी काम नहीं आ रहे। लालू प्रसाद यादव और राहुल गांधी से बात-मुलाकात का भी परिणाम भी नहीं निकल रहा है।
इंतजार लंबा हो रहा है तो बेकरारी भी बढ़ रही है। वामदल दल छिटकने के मूड में हैं। हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) मुखर हो गया है। ‘हम’ सुप्रीमो जीतनराम मांझी को सम्मानजनक सीटें चाहिए। राष्ट्रीय लोक समता पार्टी(रालोसपा) के उपेंद्र कुशवाहा को पिछली बार से ज्यादा सीटों की दरकार है। विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) के मुकेश सहनी भी ज्यादा सीटों के लिए मचल रहे हैं। समाजवादी पार्टी और वाम दलों ने अल्टीमेटम भी दे दिया है। सीटें बांटिए और जल्दी बताइए, नहीं तो मैदान में अकेले जाने के लिए तैयार हैं। उधर, बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने तो सभी सीटों पर अकेले ही ताल ठोंक दिया है।
दर्जन भर सीटों का मसला अटका हुआ है। किंतु सबसे ज्यादा दरभंगा, मधेपुरा और मुंगेर के मुद्दे पर तकरार है। तीनों को कांग्रेस छोडऩे के पक्ष में नहीं है और राजद देने के लिए तैयार नहीं है। विवाद लंबा खिंच रहा है। कई दौर की पंचायतें हो चुकी हैं। फिर भी समाधान नहीं दिख रहा है।
राजद और कांग्रेस के लिए नाक का सवाल है। 2009 में राजद ने सीट देने से पहले कांग्रेस से पहलवानों की सूची मांगी थी। अबकी कांग्रेस ने पहले ही पहलवानों का जुगाड़ कर लिया है। उन सीटों के लिए भी पहलवान खोज लिए गए हैं, जिनपर राजद की नजर है। इसलिए राजद की ओर से अबकी दूसरा दांव चला गया है।
रांची से ही लालू प्रसाद यादव ने सीट बंटवारे का फॉर्मूला तय कर दिया है। सूत्र बता रहे हैं कि लालू ने अपनी पार्टी के लिए कम से कम 20 सीटें तय कर रखी हैं। बाकी 20 को कांग्रेस और अन्य दलों के बीच बांटना चाह रहे हैं। लालू के फॉर्मूले को कांग्रेस ने खारिज कर दिया है। सूची 15 की थमाई है और शर्त भी कि 13 से कम किसी भी हाल में नहीं चाहिए।
ऐसे में छोटे घटक दल मोहरा बने हुए हैं और बड़े दल अपना मोर्चा ठीक कर रहे हैं। पूरा गठबंधन दो खेमे में बंट गया है। नई बनी विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) राजद के साथ है तो कांग्रेस के साथ रालोसपा की ताकत है। वामदलों का झुकाव कांग्रेस की ओर दिख रहा है। शरद यादव का कुनबा राजद के साथ खड़ा है।
सबसे ज्यादा मुश्किल में हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) है। उसे मजबूत सहारे की तलाश है। महागठबंधन में सबसे पहले शामिल होकर भी उसे ज्यादा कुछ नहीं मिलता दिख रहा है। जीतनराम मांझी शायद इसीलिए दुखी हैं। अपना हिस्सा जानने के लिए बेताब भी।
कांग्रेस की कृपा से मधेपुरा या पूर्णिया में से किसी एक सीट पर पप्पू यादव की दावेदारी का मामला दो हफ्ते पहले जहां था, आज भी वहीं खड़ा है। राजद-कांग्रेस के बीच यह सबसे बड़ा पेच है। पिछली बार लालटेन लेकर मधेपुरा के रास्ते लोकसभा पहुंचे पप्पू अबकी सीधे राहुल गांधी के संपर्क में हैं। तेजस्वी से ठनी हुई है।
सूचना है कि पप्पू मधेपुरा की सीट शरद यादव के लिए छोडऩे के लिए तैयार हैं, लेकिन पूर्णिया के लिए अड़े हैं। तेजस्वी अबकी किसी भी हाल में पप्पू को दिल्ली नहीं जाने देना चाहते हैं, जबकि पप्पू ने भी अपने सारे घोड़े खोल रखे हैं। पप्पू को रोकने के लिए तेजस्वी ने एक दूसरे पप्पू (उदय सिंह) को तैयार रखा है। राजद उन्हें पूर्णिया का पहलवान बता रहा है। भाजपा को बाय करने के बाद वे लालू के सीधे संपर्क में हैं। मामला फंसा है।
मधेपुरा पर अगर शरद की बात बनती है तो पप्पू के लिए कांग्रेस पूर्णिया पर दबाव बढ़ा देगी। पप्पू की पत्नी रंजीता रंजन पिछली बार सुपौल से कांग्रेस के टिकट पर सांसद बनी थीं। मधेपुरा के लिए पप्पू अपनी पार्टी का मोह छोड़कर हाथ थामने के लिए भी तैयार हैं।
महागठबंधन में दूसरी बड़ी तकरार दरभंगा सीट को लेकर है। यहां से कीर्ति झा आजाद ने पिछला चुनाव भाजपा के टिकट पर जीते थे। अब कांग्रेस के साथ हैं। कांग्रेस की हैसियत कम करने के लिए तेजस्वी ने अपने खेमे से वीआइपी के मुकेश सहनी को आगे बढ़ाया है। मुकेश दरभंगा के लिए मचल रहे हैं। दावा भी कर रहे हैं कि उन्हें ही यह सीट मिलेगी। कीर्ति का भी दावा है। पिछली दो-दो जीत का मजबूत आधार भी।
तेजस्वी को कीर्ति से दुराव नहीं है, किंतु दूसरे दलों से प्रत्याशी लाकर राजद से ज्यादा दिखाने की कांग्रेस की कवायद से खफा हैं। ऐसे में मुकेश सहनी के सहारे कांग्रेस पर लगाम लगाने की कोशिश है। कीर्ति को मधुबनी के लिए भी मनाया जा रहा है। मान गए तो बात बन जाएगी। नहीं तो झमेला आगे बढऩा तय है।
मुंगेर में बाहुबली और कांग्रेस के स्वयंभू प्रत्याशी अनंत सिंह का मामला दो महीने से ठहरा हुआ है। उनके नाम पर लालू तैयार नहीं हैं। तेजस्वी के इशारे पर जनजा दल यूनाइटेड (जदयू) के पूर्व एमएलसी राम बदन राय आगे बढ़कर ताल ठोक रहे हैं। कांग्रेस अनंत पर अड़ी है और राजद राम बदन पर। कांग्रेस के अनिल शर्मा और श्याम सुंदर सिंह धीरज भी उम्मीद लगाए बैठे हैं। राजद को अति पिछड़ा को प्रतिनिधित्व देने के लिए राज्य में कम से कम एक सीट चाहिए। इसके लिए मुंगेर को मुफीद बताया जा रहा है।
पिछली बार यहां से राजद ने प्रगति मेहता को उतारा था, जो अब जदयू में हैं। राजद के पास अति पिछड़ा वर्ग से तीन प्रत्याशी हैं। मंगनीलाल मंडल, रामबदन राय और अशोक कुमार आजाद। मंगनीलाल की परंपरागत सीट झंझारपुर है, जहां से अखिलेश यादव के कहने पर तेजस्वी ने समाजवादी पार्टी के देवेंद्र यादव के लिए करार कर लिया है। दूसरी सीट मुंगेर है और तीसरी नालंदा। मुंगेर पर अगर कांग्रेस को नहीं मनाया जा सका तो नालंदा से अशोक कुमार आजाद की लॉटरी लग सकती है। गया के निवासी अशोक राजद के पूर्व एमएलसी बादशाह प्रसाद आजाद के भतीजे हैं। वैसे मुंगेर में रामबदन के लिए ही अभी राह बनाई जा रही है।