कुसमुंडा खदान में भूविस्थापितों ने बंद कराया काम

बिशेष संवाददाता द्वारा

कोरबा: एसईसीएल के कुसमुंडा, गेवरा, दीपका और कोरबा क्षेत्र के प्रभावित गांव के भू विस्थापितों ने छत्तीसगढ़ किसान सभा और भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेतृत्व में मंगलवार को कामबंद आंदोलन किया. भूविस्थापितों ने मंगलवार सुबह 6 बजे से कोल परिवहन को बंद कर हड़ताल शुरू कर दिया. हड़ताल देर शाम तक चली. पूरे दिन खदान में उत्खन प्रभावित रहा. कंपनी को भारी नुकसान भी हुआ. खबर यह भी है कि आंदोलन करने वाले भू विस्थापितों के विरुद्ध कंपनी की शिकायत पर पुलिस ने एफआईआर भी दर्ज किया है.
एसईसीएल को देना होगा स्थाई रोजगार: किसान सभा के प्रदेश संयुक्त सचिव प्रशांत झा ने कहा कि सभी भू विस्थापित किसानों जिनकी जमीन एसईसीएल ने अधिग्रहण किया है, उन सभी खाते पर भू विस्थापितों को स्थाई रोजगार एसईसीएल को देना होगा. विकास परियोजना के नाम पर गरीबों को सपने दिखा कर लोगों को विस्थापित किया गया है. अपने पुनर्वास और रोजगार के लिये भू विस्थापित परिवार आज भी भटक रहे हैं. विकास के नाम पर अपनी गांव और जमीन से बेदखल कर दिए गए. विस्थापित परिवारों का जीवन स्तर सुधरने के बजाय और भी बदतर हो गई है.
प्रशांत झा ने कहा कि कोरबा जिले की विकास की जो नींव रखी गई है उसमें प्रभावित परिवारों की अनदेखी की गई है. लगातार संघर्ष के बाद खानापूर्ति के नाम पर कुछ लोगों को रोजगार और बसावट दिया गया. जमीन किसानों का स्थाई रोजगार का जरिया होता है. सरकार ने जमीन लेकर किसानों की जिंदगी के एक हिस्सा को छीन लिया है. इसलिए जमीन के बदले सभी खातेदारों को स्थाई रोजगार देना होगा. भू विस्थापित किसानों के पास अब संघर्ष के अलावा और कोई रास्ता नहीं बचा है.
जहां जरूरत नहीं, वहां की जमीनों को वापस कियाजाए: किसान सभा के नेता दीपक साहू, सुमेंद्र सिंह कंवर,जय कौशिक ने कहा कि पुराने लंबित रोजगार को लेकर एसईसीएल गंभीर नहीं है. खमहरिया के किसान जिस जमीन पर कई पीढ़ियों से खेती किसानी कर रहे हैं, उसे प्रबंधन, प्रशासन का सहारा लेकर किसानों से जबरन छीन रही है. इसका किसान सभा विरोध करती है और उन जमीनों को किसानों को वापस करने की मांग करती है. भू विस्थापित रोजगार एकता संघ के नेता दामोदर श्याम, रेशम यादव,रघु ने कहा कि 1978 से लेकर 2004 के मध्य कोयला खनन के लिए जमीन को अधिग्रहित किया गया है, लेकिन तब से अब तक विस्थापित ग्रामीणों को न रोजगार दिया गया है न पुनर्वास ऐसे प्रभावितों की संख्या सैकड़ों में है.

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