गोमो। रघुनाथ महतो का जन्म ग्राम नरकोपी उर्फ दुमदुमी, प्रखंड तोपचांची तत्कालीन जिला मानभूम में हुआ था. इनके पिता का नाम मेघलाल महतो था जो पेशा से कृषक थे. उनकी पत्नी का नाम माँदरी देवी था. वे तीन भाई थे – रघुनाथ महतो, चैतो महतो व महावीर महतो. भाइयों में सबसे बड़े थे. इनके दो संतान थे एक बेटा और एक बेटी. बेटा का नाम खगेनंद्र महतो तथा बेटी का नाम देवकी था. रघुनाथ महतो की प्रारम्भिक शिक्षा दीक्षा नरकोपी से 37 किलोमीटर दूर एच ई हाई स्कूल धनबाद में हुई थी. यहीं रहकर माध्यमिक तक की शिक्षा पूरी की थी. इनके स्कूली सहपाठी स्वर्गीय विनोद बिहारी महतो जी थे. उन्होंने माध्यमिक (मैट्रिक) परीक्षा 1942 ई. में पास कर ली थी. वे पढ़ने – लिखने में बहुत तेज थे. अपने गांव तक ही नहीं बल्कि आस पास के गांव के लोग इनका खूब आदर और सम्मान करते थे. उन्होंने अपने जीवन में शिक्षा को बड़ी महत्व दिया था. इनका मानना था कि बिना पढे लिखे समाज को सही दिशा देना काफी मुस्किल काम है.उस समय जमींदारी और महाजनी प्रथा का बोलबाला था. समाज में अन्धविश्वास चरम पर था. लोग सूदखोर और महाजन के चंगुल में जकड़े हुए थे. इसी वजह से समाज में सुधार लाने का संकल्प लिया.वे अच्छे खासे सरकारी नौकरी में थे. कोर्ट में पेशकार थे. यहाँ उन्होंने गांव ग्राम के लोगों को बेबजह परेशान होते बहुत नजदीक से देखा. यह नौकरी उन्हें रास नहीं आई. उन्होंने पेशकार की नौकरी त्याग करना उचित समझा. वे गांव में शिक्षा का अलख जगाने के लिये वापस अपने गांव चले आए. कुछ वर्षों तक तोपचांची में वे शिक्षक की नौकरी में रहे. फिर उन्होंने त्यागपत्र देकर समाज की सेवा में जीवन अर्पित करने का मन बना लिया.वे देश दुनिया की ख़बरों से हमेशा अपडेट रहते. आमलोगों को उनकी भाषा में सरल अंदाज में समझाते रहते थे. शाम को इनके पास हमेशा लोगों की मंडली बैठी रहती थी. वे अपने पास रेडियो रखते थे. राष्ट्रीय, अतर्राष्ट्रीय और प्रादेशिक समाचार को नियमित सुनते. बीबीसी लंदन इनका पसंदीदा चेनल था. वहीँ दैनिक अख़बार में नव भारत टाइम्स, टाइम्स आफ इंडिया, टेलीग्राफ नियमित पढ़ा करते थे. इण्डिया टुडे सहित अनेकों हिंदी तथा अंग्रेजी पत्रिका भी पढ़ते और विश्लेषण करते थे. वे बंगला और असमिया पत्रिकाओं को मंगवाते और पढ़ते. इनके द्वारा दर्जनों पुस्तकें लिखी गई है. इनकी लेखनी ने समाज में खासकर शोषित बंचित मजदुर किसान नोजवान और महिलाओं को हक़ अधिकार के लिये जागृत किया है. वे लेखन कला के धनी थे. आम ग्रामीण के समझने से लेकर बड़े बड़े बुद्धिजीवी के लिये पुस्तकें लिखीं. अंग्रेजी तथा बंगला के कई पुस्तकों का इनके द्वारा अनुवाद किया गया है जिनमें प्रमुख है – का हिंदी में अनुवाद जिसका शीर्षक है – भारत के बड़े पूंजीपति लोग : इसकी उत्पत्ति, विकास और चरित्र.वे 1952 ईस्वी में देश आजादी के बाद तोपचांची पंचायत के निर्विरोध प्रथम मुखिया बने. इस पद पर रहते हुए इन्होंने कई जन कल्याण कार्य किये. जिसमें स्वास्थ्य और शिक्षा प्रमुख थे. कृषि और जंगल बचाओ पर लोगों को संवेदनशील बनाया. लोग कहते है कि देश में जब भीषण अकाल पड़ा था तब लोगों के पास खाने को अनाज नहीं था. गोंदली, मडुवा, कोदो, बाजरा खाकर गुजर कर रहे थे उस समय अपने पंचायत के जरुरतमंदों को अनाज उपलब्ध कराये थे. उन्होंने पंचायत के अलावा आसपास के कई गांव में अनाज की कोई कमी नहीं होने दी थी. समाज के कई बूढ़े बुजुर्ग उनके किये कार्यों को आज भी याद करते हैं, उनकी प्रशंसा करते थकते नहीं है.स्व. बिनोद बिहारी महतो अगुवाई में समाज में फेले कुरीतियों के खिलाफ शिवाजी समाज का गठन तथा सोनोत संथाल समाज का गठन होता है. इसी दौरान रघुनाथ महतो का जुडाव बामपंथ विचारधारा के लोगों से हुआ. कई बड़े अति बामपंथी नेताओं ने इनसे संपर्क किया. धीरे – धीरे इनका झुकाव सर्वहारा क्रांति की ओर बढ़ता गया. वे सर्वहारा क्रांति के पक्ष में लिखने का कार्य करने लगे. सरकार की गलत और दमनकारी नीतियों के घोर बिरोधी थे. आपातकाल के दौरान पुलिस प्रशासन इनको गिरफ्तार करने के लिये कई बार घेराबंदी की पर पकड़ नहीं सकी. यहीं से वे भूमिगत रहने लगे. भूमिगत रहकर समाज में बदलाव की ज्वार को तेज करने लगे थे. उनकी पहचान एक समाजवादी लेखक, विचारक, क्रांतिकारी के रूप में होने लगी. झारखंड आन्दोलन के पक्ष में स्पष्ट विचार था. एक ऐसे झारखंड का सपना था जो शोषण विहीन हो, मानव द्वारा मानव का शोषण न हो. वे अफसरशाही तथा तानाशाही प्रशासन के खिलाफ रहे. वे किसानों को सरकार की अनुदानों पर कम निर्भर रहने के लिए कहते थे. वे समाज को ईमानदारी व निष्ठा से काम करने की सलाह देते थे. इनको बंगाल व एकत्रित झारखंड बिहार बंगाल के वामपंथी विचार के बड़े लीडर के रूप में जानते हैं. कभी भी मिडिया और अख़बार के सामने स्वयं को प्रस्तुत नहीं किया. उनके द्वारा बतलाये गये बातें आमलोगों व वंचित शोषित समाज को प्रेरणा देते रहेंगे. आज हम लोग समाज को भूलकर परिवार तक सीमित हो रहे हैं. अब समय आ गया है कि ऐसे महापुरुषों की जीवनी को जन जन तक पहुंचाएं.आगामी 26 अक्टूबर 2024 को इनकी पुण्यतिथि है. इनके गांव के दुमदुमी पंचायत सचिवालय के पास मूर्ति स्थापित की गई है. प्रत्येक वर्ष इनके स्टेच्यु पर माल्यार्पण किया जाता है. यह सन्देश दिया जाता है कि धनबाद की धरती ने एक महापुरुष को जन्म दिया था जो अब हमारे बीच नहीं है, हम उन्हें श्रद्धांजलि देकर उन्हें याद करें और उनके क्रांतिकारी विचारों को आगे बढ़ाये. मेरी कलम से स्व. रघुनाथ महतो की व्यक्तित्व और कृतितव की स्मरण जिला संगठन सचिव– सदानंद महतो, (आजसू पार्टी )
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