राजनीतिक संवाददाता द्वारा
पटना: सता में सह-मात के खेल में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी सहयोगी भाजपा से एक और बाज़ी हार गये. नीतीश ने भाजपा खासकर विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा की इच्छा के मुताबिक लखीसराय के डीएसपी रंजन कुमार का आखिरकार तबादला कर दिया.
शुक्रवार को इस संबंध में राज्य के गृह विभाग ने अधिसूचना जारी की. माना जाता है कि ऐसा नीतीश कुमार से हरी झंडी मिलने के बाद किया गया. लखीसराय विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा का विधानसभा क्षेत्र हैं. कुछ दिन पहले जब सरस्वती पूजा के दौरान कोरोना नियमों के उल्लंघन के आधार पर दो भाजपा समर्थकों की गिरफ़्तारी हुई थी. तब से विधानसभा अध्यक्ष ने एक थानेदार और डीएसपी के तबादले को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया था. लेकिन माना जाता है कि स्थानीय सांसद राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह ऐसा नहीं चाहते थे. लेकिन जब विधानसभा सत्र शुरू हुआ तो इस संबंध में कई बार प्रश्न भाजपा विधायकों ने उठाया और सोमवार को जब सरकार के जवाब के बाद भी अध्यक्ष ने टिप्पणी की तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें जमकर खरी खोटी सुना दी थी. इसके बाद अध्यक्ष सिन्हा और भाजपा विधायकों में नीतीश के प्रति काफी रोष दिखा.
अगले दिन ना सिन्हा सदन की कार्यवाही चलाने के लिए सदन में आये ना नीतीश कुमार कार्यवाही में हिस्सा लेने पहुंचे. लेकिन बाद में बुधवार शाम कैबिनेट के बाद नीतीश कुमार दोनों दलों के वरिष्ठ मंत्रियों के बीच बचाव के बाद अध्यक्ष से मिले और नाराज़ सिन्हा को जल्द डीएसपी को हटाने का आश्वासन दिया था. इसके बाद दो दिनों के अंदर उन्होंने शुक्रवार को सरकारी कार्यालय में अवकाश के बावजूद तबादले की अधिसूचना जारी करवा दी. भाजपा सूत्रों के अनुसार नीतीश इस मुद्दे पर भाजपा के तेवर से बचाव की मुद्रा में हैं और उन्होंने फिलहाल अपनी गद्दी एक अधिकारी की बलि देकर बचा ली.
वहीं, जनता दल यूनाइटेड के नेता मानते हैं कि नीतीश ने भाजपा के सामने घुटने एक बार फिर टेक गिए, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता, लेकिन गठबंधन में ये सब बात आम हैं. हालांकि, उनका कहना है कि तबादले का दबाव नीतीश ने खुद अपने सिर विधानसभा के अंदर आक्रामक भाषा के कारण लिया. लेकिन इस बात से कोई इनकार नहीं कर रहा कि सरकार में अब भाजपा का वर्चस्व और बढ़ेगा और आने वाले दिनों में नीतीश कुमार को हर मुद्दे पर अपने सहयोगी के सामने झुकना पड़ेगा.