विशेष प्रतिनिधि द्वारा
खूंटी, झारखंड का खूंटी जिला अक्सर सुर्खियों में रहता है। यह कई कारणों से देश-दुनिया में मशहूर है। संयुक्त बिहार में यह पहला अनुमंडल बना था। झारखंड अगल राज्य की मांग भी यहीं से उठी थी। नक्सल घटनाओं के लिए भी यह मशहूर रहा है। भगवान बिरसा मुंडा के आंदोलन की भी यह पवित्र भूमि रही है। इतना ही नहीं, हॉकी के लिए भी यहां की माटी उर्वरा रही है। पर्यटन के नजरिए से अगर देखा जाए तो कुदरत ने इस सरजमीं को कई लाजवाब चीजों से नवाजा है। लाख/लाह की खेती के लिए भी इसका चप्पा-चप्पा जाना जाता रहा है।
अंग्रेजों के विरुद्ध बिरसा आंदोलन का केंद्र बिंदु रहा है खूंटी। वर्ष 1890 से लगभग दस वर्ष तक चले बिरसा आंदोलन का प्रमुख केंद्र खूंटी ही था। तत्कालीन मुंडा प्रदेश के इस भूभाग पर बिरसा ने विदेशी शासक अंग्रेजों और विदेशी मिशनरियों के विरुद्ध उलगुलान (आंदोलन) किया। सरना धर्म और जल, जंगल और जमीन की रक्षा के लिए हुए इस उलगुलान का व्यापक असर हुआ। अंग्रेजों ने मुंडाओं के इस आंदोलन पर नजदीक से नजर रखने के लिए पांच सितंबर 1905 को खूंटी को अनुमंडल का दर्जा दिया। मुंडाओं के आंदोलन को शांत करने के लिए अनुमंडल का नाम रखा- मुंडा सबडिवीजन। बाद में यह खूंटी सबडिवीजन यानी खूंटी अनुमंडल के नाम से मशहूर हो गया।
खूंटी सबडिवीजन नामकरण के पीछे आदिवासियों के खूंटकट्टी प्रथा का प्रभाव बताया जाता है। तत्कालीन खूंटी अनुमंडल में लगभग 320 खूंटकट्टी गांव हुआ करते थे। तत्कालीन अंग्रेज शासकों ने भी मुंडाओं के इस नियम का आदर करते हुए इसके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की। आजादी के बाद सरकार ने भी इस खूंटकट्टी व्यवस्था को बरकरार रखा। अब भी यह बरकरार है। खूंटकट्टी प्रथा का अर्थ यह हुआ कि संबंधित गांव के खूंटकटीदार (जमींदार) ही स्थानीय ग्रामीणों से चंदा (टैक्स) वसूलते हैं। ग्रामीण सरकार को टैक्स नहीं भरते हैं। वर्षों से चली आ रही यह प्रथा अब थोड़ी मंद जरूर पड़ गई है, लेकिन जिंदा है। इन्हीं खूंटकट्टी गांवों को मिलाकर खूंटी अनुमंडल निर्माण के 102 साल बाद 12 सितंबर 2007 को खूंटी को जिला बना दिया गया।
सर्वप्रथम जयपाल सिंह ने आजादी पूर्व 1938 में आदिवासी महासभा नामक क्षेत्रीय दल बनाकर सशक्त रूप से झारखंड अलग राज्य की मांग उठाई थी। आजादी के बाद आदिवासी महासभा का नाम झारखंड पार्टी कर दिया गया। इसके नाम से आंदोलन जारी रहा। 1950-60 के दौरान बिहार विधान सभा और लोकसभा के चुनावों में इस पार्टी ने अपना परचम लहराया। आलम यह रहा कि यह पार्टी आदिवासियों के बीच काफी लोकप्रिय हो गई थी। झारखंड आंदोलन की मांग तेजी से बढ़ती गई और आगे चलकर झारखंड राज्य भी बना।
बिरसा आंदोलन के बाद अंग्रेजों द्वारा खूंटी को अनुमंडल बनाए जाने पर जंगलों के बीच रहने वाले आदिवासी भी सामाजिक और राजनीतिक रूप से जागृत हुए। विकास की दौड़ में शामिल होने लगे। इसी का प्रतिफल था कि इस मुंडा बहुल भू-भाग से मारंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा, भैया राम मुंडा, सिंगराय मानकी, टी मुचिराय मुंडा, एनई होरो, डा रामदयाल मुंडा, सुशीला केरकेट्टा सहित वर्तमान के पद्म भूषण कड़िया मुंडा जैसी राजनीतिक सामाजिक प्रतिभाएं राष्ट्रीय स्तर पर उभर कर सामने आईं। देश-विदेश में इस भूभाग का नाम रोशन किया।
हाकी के प्रमुख केंद्र स्थल के रूप में खूंटी का नाम देश-विदेश में विख्यात है। इस माटी ने अनेक राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देश को दिया है। इनमें जयपाल सिंह मुंडा का नाम स्वर्णाक्षरों में अंकित रहेगा। सबसे पहले वर्ष 1928 में ओलंपिक में स्वर्ण दिलाकर मारांग गोमके जयपास सिंह मुंडा ने खूंटी का नाम रोशन किया था। वह टकरा गांव के रहने वाले थे। इसके बाद गोपाल भेंगरा ने ओलिंपिंक खेलकर इस जिले का नाम देश-दुनिया में रोशन किया। यहां की निक्की प्रधान इकलौती लड़की हैं, जिन्हें दो बार ओलिंपिंक में खेलने का अवसर मिला। ओलिंपिंक खेलने वाली वह झारखंड की पहली लड़की हैं। वह ऐसे गांव से आती हैं जहां खेल मैदान तक नहीं है। खूंटी जिले के मुरहू प्रखंड का हेसल गांव हाकी के लिए काफी उर्वरा है। गांव की 13 लड़कियां देश-दुनिया में हाकी खेल रही हैं। इनमें 12 लड़कियां अलग-अलग क्षेत्र में नौकरी कर रही हैं। निक्की प्रधान, पुष्पा प्रधान, शशि प्रधान, गांगी मुंडू, रश्मि मुुडू, शीलवंती मिंजूर, एतवारी मुंडू, बिरसी मुंडू, रुक्मनी डोडराय, मुक्ता मुंडू, आशा कुमारी, कांति प्रधान व रेशमा मिंजूर हाकी खिलाड़ी हैं। इनमें शशि प्रधान, कांति प्रधान व निक्की प्रधान सगी बहने हैं। पुष्पा प्रधान चचेरी बहन हैं।
प्रकृति ने खूंटी जिले को विशेष रूप से सजाया संवारा है। यहां के झरने, जंगल, पहाड़, पठार, टुकू, टोंगरी, नदी-नाले आपका मन मोह लेंगे। यहां बड़ी संख्या में जलप्रपात मौजूद हैं। मुरहू प्रखंड में पड़ने वाले पंचघाघ, रानी फॉल, तोरपा प्रखंड में पड़ने वाले पेरवांघाघ, पांडु पुडिंग, रनिया प्रखंड का उलुंग, खूंटी प्रखंड में पड़ने वाले रीमिक्स फॉल और सीमा से सटे दशम जलप्रपात की ख्याति दूर-दूर तक है। वहीं, मुरहू के पूरब स्थित पंगुरा जलप्रपात सहित अन्य जलप्रपातों में विकास की असीम संभावनाएं हैं, जिससे बड़ी संख्या में पर्यटक यहां आ सकते हैं। इसके अतिरिक्त ऐतिहासिक धरोहर के रूप में युद्ध स्थली डोंबारी पहाड़, धरती आबा बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलीहातू तथा कर्म स्थली चलकद भी खूंटी जिले में ही पड़ता है, जो मुंडाओं के इतिहास को अपनी गोद में समेटे हुए हैं।
लाह/लाख उत्पादन के लिए भी खूंटी जिला विख्यात रहा है। यहां की एक बड़ी आबादी लाह उत्पादन पर निर्भर है। यहां के आदिवासी बेर और कुसुम के पेड़ों पर लाह का उत्पादन करते हैं। चूंकि यहां उद्योग धंधे नहीं हैं, इस कारण लोग पूरी तरह से पारंपरिक खेती और वन उपज पर आश्रित हैं। अफीम की खेती के लिए यह इलाका पूरी तरह से बदनाम भी रहा है। अब इसका असर कम हो रहा है, सरकार ने यहां लेमन ग्रास, गेंदा फूल, तरबूज आदि की खेती को बढ़ावा देने की पहल की है। तेजी से लोग इस ओर आ रहे हैं।