News Agency : लोकसभा चुनाव 2019 का प्रचार अभियान गड़े मुर्दे उखाड़ने के लिए भी याद किया जाएगा. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने राफेल सौदे में कथित तौर पर भ्रष्टाचार को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरा. वहीं इस आरोप के जवाब में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश की एक रैली में दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बहाने राहुल गांधी पर निशाना साधा. पीएम मोदी ने कहा, ‘आपके पिता को उनके दरबारी मिस्टर क्लीन कहते थे, लेकिन उनके जीवन का अंत भ्रष्टाचारी नंबर one के रूप में हुआ.’
लेकिन शायद प्रधानमंत्री मोदी इतिहास के उस हिस्से को भूल गए जिसमें उनके केंद्रीय मंत्री अरुण जेटली बोफोर्स घोटाले की जांच के लिए बनी समिति का हिस्सा थे और उन्हें इसमें कुछ भी संदिग्ध नहीं मिला था. अंग्रेजी की पत्रिका कारवां में छपी प्रवीण दोंती की रिपोर्ट बताती है कि 1987 में अरुण जेटली राजीव गांधी के सरकार में वित्त मंत्री रहे वीपी सिंह के करीबी हुआ करते थे. बाद में मतभेद बढ़ने के बाद वीपी सिंह ने राजीव गांधी की सरकार से इस्तीफा दे दिया था.
दिसंबर 1989 में बोफोर्स घोटाले की लहर पर सवार होकर वी.पी. सिंह, जनता दल के नेतृत्व में बीजेपी-समर्थित नेशनल फ्रंट सरकार के प्रधानमंत्री बने और उस सरकार में जेटली अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल बनाए गए. रिपोर्ट आगे बताती है कि जेटली जैसे वकीलों की सेवाओं के चलते प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह से अपेक्षा की जा रही थी कि वे बोफोर्स आरोपों की जांच को अंजाम तक पहुचाएंगे.
जनवरी 1990 में, तत्कालीन अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अरुण जेटली समेत प्रवर्तन निदेशालय (ED) के पूर्व निदेशक भूरे लाल और सीबीआई के डिप्टी इंस्पेक्टर-जनरल एम.के. माधवन का एक जांच दल जांच-पड़ताल के सिलसिले में स्विट्जरलैंड और स्वीडन गया. मगर आठ महीने बाद वही ‘ढाक के तीन पात’ वाली बात हो गई. उस दौरान इंडिया टुडे के एक लेख में, एक सांसद का बयान छपा.
इसमें उन्होंने कहा कि अगर जांच दल ने ‘विदेशों में इसी तरह अपनी जांच जारी रखी तो उसे जल्द ही प्रवासी भारतीयों का दर्जा मिल जाएगा.’ बहरहाल, 2012 में स्वीडिश पुलिस के पूर्व प्रमुख स्टेन लिंडस्ट्रोम, जिन्होंने पत्रकार चित्रा सुब्रमण्यम को बोफोर्स संबंधित अति संवेदनशील दस्तावेज मुहैया कराए थे, ने एक इंटरव्यू में स्वीडन जाने वाली उस टीम के खिलाफ दावा कि इस जांच ने ‘पानी और गंदा कर दिया था.’ लिंडस्ट्रोम ने कहना था कि चित्रा सुब्रमण्यम की रिपोर्ट में पांच स्विस बैंक खातों का जिक्र था जिनमें बोफोर्स की रिश्वत जमा की गई थी.
टीम ने राजीव गांधी के करीबी दोस्त, बॉलीबुड अभिनेता अमिताभ बच्चन का नाम भी इसमें शामिल कर दिया, जिसकी खबर डेगेंस नाइटर नामक अखबार में छपी. बच्चन द्वारा यूके कोर्ट में दायर किया गया केस जीतने के बाद, अखबार ने अपना माफीनामा छापा. बच्चन का दावा था कि भारत सरकार की तरफ से बोफोर्स लेनदेन के मामले में सीधे-सीधे जुड़े लोगों की सूचना पर विश्वास करना भ्रमित करने वाला है.
बोफोर्स मामले पर रिपोर्ट करने वाली चित्रा सुब्रमण्यम अब अरुण जेटली पर कहती हैं कि, ‘वे वही कर रहे थे जो उनसे राजनीतिक रूप से अपेक्षित था. वीपी सिंह ने आरोप लगाया था कि स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी ने कथित तौर पर भारत सरकार के साथ one.3 बिलियन डॉलर का करार करने के लिए कथित तौर पर राजीव गांधी को रिश्वत खिलाई थी. फरवरी-मार्च 2004 में मामले की सुनवाई कर रहे कोर्ट ने स्वर्गीय राजीव गांधी और इस केस में अन्य आरोपी तत्कालीन रक्षा सचिव एस. के. भटनागर को बरी कर दिया. भटनागर का 2001 में निधन हो गया था.
अरुण जेटली ने कुछ दिन पहले समाचार एजेंसी एएनआई के साथ एक इंटरव्यू में कहा, ‘कांग्रेस का इतिहास है कि डिफेंस डील में कांग्रेस के हाथ गंदे हैं. अरुण जेटली से यह पूछा गया कि आप यह बात बोफोर्स के बारे में कह रहे हैं तो उन्होंने कहा, ‘बोफोर्स है, एचडीडब्ल्यू है, कितनी डील्स हैं,’ इसी तरह अरुण जेटली ने राफेल मामले में जांच समित गठित करने की मांग पर a pair of जनवरी 2019 को संसद में कहा कि, ‘बोफोर्स की जांच के लिए बी.
शंकरानंद की अगुवाई में जेपीसी बनी थी. अब साबित हो गया है कि बोफोर्स में भ्रष्टाचार हुआ है, लेकिन जेपीसी ने बोफोर्स में कांग्रेस को क्लीन चिट दे दी थी. बोफोर्स घोटाले में फंसे लोग जेपीसी की मांग कर रहे हैं, ताकि मोदी सरकार पर अभी तक जो भ्रष्टाचार के आरोप नहीं लगे, जेपीसी के जरिए यह फर्जी आरोप सरकार पर लगाए जाएं. इसलिए सरकार जेपीसी की मांग को ठुकराती है.’