News Agency : कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की अगुवाई में झारखंड में बना महागठबंधन क्या पिछले चुनाव में मिली दो सीटों से अधिक सीट हासिल कर पाएगा या नहीं। लेकिन यह स्पष्ट है कि हेमंत सोरेन (43), गुरुजी के नाम से फेमस अपने पिता शिबू सोरेन की छत्रछाया से निकलकर विपक्ष के नेता, गाइड और रणनीतिकार की भूमिका में आ चुके हैं।
तीन बार झारखंड के सीएम की कुर्सी पर बैठ चुके झारखंड मुक्ति मोर्चा के अध्यक्ष शिबू सोरेन (74) अपनी बढ़ती उम्र और खराब स्वास्थ्य की वजह से जनता के बीच कम ही नजर आते हैं। 2014 के विधानसभा चुनावों में बीजेपी राज्य की सत्ता में आ गई थी और रघुबर दास ने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली। इसी के साथ जेएमएम के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पार्टी की चुनावी रणनीति संभाली।
हेमंत सोरेन आदिवासी, अस्थाई टीचरों, सरकारी स्कूलों के मुद्दों पर लगातार सरकार को घेरते रहे। इस साल जनवरी में कांग्रेस, आरजेडी और झारखंड विकास मोर्चा के साथ मिलकर लोकसभा चुनाव में उतरने की रणनीति की मुख्य धुरी रहे। झारखंड ही पहला राज्य बना, जहां विपक्षी दलों के महागठबंधन की योजना फलीभूत हुई। इस चुनाव में विपक्षी दलों ने कांग्रेस के नेतृत्व में चुनावी मैदान में उतरना स्वीकार किया।
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस 7, झारखंड मुक्ति मोर्चा 4, झारखंड विकास मोर्चा 2 और आरजेडी 1 सीट पर लड़ रही है। चुनावी राजनीति में हेमंत का उदय 2005 में हुआ, जब उनके पिता शिबू सोरेन ने उन्हें दुमका सीट से चुनाव मैदान में उतारा। इस फैसले से पार्टी में विद्रोह के स्वर फूट पड़े और शिबू के काफी पुराने साथी स्टीफेन मरांडी ने जेएमएम छोड़ निर्दलीय चुनाव लड़ा और जीत गए। हेमंत को पहले चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन चार साल के बाद समीकरण बदल गए, जब हेमंत सोरेन ने दुमका से जीत का परचम लहरा दिया और 6 बार के विधायक मरांडी तीसरे नंबर पर रहे।