यूं तो पांच सालों बाद लोकसभा चुनाव आते और जाते हैं। उनके साथ सरकारें बनती और बिगड़ती हैं। परंतु कभी-कभी चुनाव के साथ देश और देशवासियों की किस्मत भी दांव पर लग जाती है। 2019 का लोकसभा चुनाव एक ऐसा ही चुनाव है, जिसमें देश और देशवासियों की किस्मत दांव पर लगी है। कांग्रेस नेता सोनिया गांधी के अनुसार यह चुनाव भारतीय आत्मा की रक्षा का चुनाव है।
अब आप अंदाजा लगा सकते हैं कि 11 अप्रैल से 23 मई तक भारत एक ऐसे दौर से गुजरने वाला है जिसको इतिहास याद रखेगा। वह क्यों! वह इसलिए की यह चुनाव इस बात को तय करेगा कि भारत सदियों पुरानी अपनी सांस्कृतिक धुरि पर चलता रहेगा या फिर 2019 में नई सरकार बनने के बाद यह मोदी के सपनों का ‘हिंदूराष्ट्र’ होगा।
परंतु भारत तो आर्य समय से ही मूलतः एक हिंदू बहुसंख्यक देश रहा है। तो फिर नरेंद्र मोदी के ‘हिंदूराष्ट्र’ और पारंपरिक ‘हिंदूराष्ट्र’ में क्या अंतर है? बात यह है कि मोदी जी का ‘हिंदूराष्ट्र’ ‘हिंदुत्व’ के सिद्धांतों का राष्ट्र है। जबकि सामान्य भारतीय राष्ट्र महाभारत काल से वेदों, पुराणों और गीता व रामायण जैसे शास्त्रों पर आधारित राष्ट्र है। हिंदू धर्म और संस्कृति अत्यंत उदार धर्म और संस्कृति है। इसमें ब्रह्म तक पहुंचने के अनेक मार्ग हैं।
तब ही तो भारत में 40 कोस पर भगवान और पूजा पद्धति बदल जाती है। यहां थोड़ी-थोड़ी दूर पर भाषा, वेशभूषा और खानपान सब कुछ बदल जाता है। केवल इतना ही नहीं, अपितु हिंदू धर्म दूसरे हर धर्म को अपनी गोद में पनाह देने को आमंत्रित करता है। तब ही तो इस्लाम, बौद्ध, सिख, ईसाई, पारसी कौन से धर्म अनुयायी हैं, जो भारत में सुख चैन की सांस से नहीं जिए। इसी वजह से तो भारतीय सभ्यता को गंगा-जमुनी रंगारंग सभ्यता कहा गया।
पर हिंदुत्व भारत की इस उदारवादी रंगारंग हिंदू परंपरा से बहुत अलग सिद्धांत है। हिंदुत्व (संघ और बीजेपी की विचारधारा) एक राष्ट्र, एक भाषा और एक संस्कृति पर आधारित विचारधारा है। इस परंपरा में कश्मीर से कन्याकुमारी तक एक ही संस्कृति, एक ही पूजा पद्धति और एक ही भाषा होनी चाहिए। भला यह संभव है?
यह भारतीय परिस्थितियों के विपरीत विचार है। अगर असम, तमिलनाडु और उनके जैसे लगभग एक दर्जन राज्यों पर यह विचारधारा थोपी गई, तो भारत टुकड़े-टुकड़े हो जाएगा। हम को यह नहीं भूलना चाहिए कि एक धर्म, एक पूजा पद्धति, एक भाषा के नाम पर 1947 में पाकिस्तान का निर्माण हुआ था। आज क्या हम उसी ‘हिंदू-पाकिस्तान’ की राह पर चलकर सफल हो सकते हैं। हरगिज नहीं।
जिस तरह पाकिस्तान के 1971 में दो टुकड़े हो गए, हिंदुत्व के चलते भारत के भी न जाने कितने टुकड़े हो जाएंगे। धार्मिक कट्टरवाद विभाजन को जन्म देता है। वह इस्लाम के नाम पर हो या हिंदुत्व के आधार पर हो, दोनों ही खतरनाक विचारधाराएं हैं। यही कारण है कि 2019 का चुनाव भारतीय इतिहास का एक अलग किस्म का चुनाव है।
इस चुनाव में केवल एक सरकार का बनना या बिगड़ना ही तय नहीं होगा, अपितु यह भी तय होगा कि भारत एक उदारवादी राष्ट्र के रूप में बरकरार रहेगा या नहीं। क्योंकि बीजेपी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में स्पष्ट कर दिया है कि वह 2019 के चुनाव के पश्चात् एक ऐसे भारत को निमंत्रण देंगे जो कदापि एक ‘हिंदू-पाकिस्तान’ जैसा होगा।
इस भारतवर्ष की स्थापना घृणा पर होगी। क्योंकि हिंदुत्व आाधारित भारत में अल्पसंख्यक दूसरे दर्जे के नागरिक होंगे। अभी आप जो ‘मॉब लिंचिंग’ या गुरूग्राम में एक मुस्लिम व्यक्ति के घर में घुसकर पूरे परिवार की पिटाई जैसी घटनाएं देख रहे हैं, वह एक आम बात होगी। याद रखिए कि भले ही मुसलमान को अल्पसंख्यक कहा जाता हो, लेकिन वह इस देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी है। भला कौन ‘मॉब-लिंचिंग’ या घर में घुसकर अपनी पिटाई सदा बर्दाश्त करेगा।
इसलिए मोदीजी की सत्ता में वापसी देश की सभ्यता, उसकी परंपरा, उसकी एकता और अखंडता पर प्रहार सिद्ध हो सकती है। अब इस अवस्था में भारतीय राजनीतिक दल ही नहीं अपितु भारतीय नागरिक समाज का भी यह कर्तव्य बनता है कि वह भारत की आत्मा की रक्षा के लिए एकजुट होकर भारत की रक्षा अपने वोटों से करे। इसलिए नरेंद्र मोदी को हराने के लिए एक सोची-समझी रणनीति की आवश्यकता है।
इससे पहले कि एक ऐसी रणनीति पर विचार हो, बीजेपी की रणनीति को समझना आवश्यक है। नरेंद्र मोदी ने यह स्पष्ट कर दिया कि वह साम, दाम, दंड, भेद की रणनीति का उपयोग करेंगे। वह भारत को एक ‘दमदार’ सरकार देने की आड़ में ‘घृणा’ की राजनीति का उपयोग करेंगे। जब प्रधानमंत्री स्वयं खुलकर अपने भाषणों में ‘हिंदू-मुस्लिम’ कर रहे हैं, तो फिर औरों से क्या अपेक्षा की जाए।
हद यह है कि स्वयं प्रधानमंत्री अब बालाकोट और पुलवामा की आड़ में एक ऐसे राष्ट्रवाद को जन्म दे रहे हैं जिसका आधार घृणा है। अर्थात् बीजेपी का संपूर्ण चुनावी प्रचार जनता के मन में एक काल्पनिक भय उत्पन्न करने पर आधारित होगा। यह काम अपने ‘काल्पनिक शत्रु’ के प्रति घृणा उत्पन्न किए बिना संभव नहीं है।
अब आप सोच सकते हैं कि घृणा की नींव पर जन्मी सरकार कैसी सरकार होगी। अतः इस विचारधारा को हराने के लिए आपकी रणनीति केवल यही हो सकती है कि आप बीजेपी के पिछले पांच सालों के कामकाज पर उनको परखें, न कि उनके घृणात्मक प्रोपेगंडा में बहकर वोट करें।
बीजेपी की रणनीति का दूसरा अहम अंग यह है कि प्रचार माध्यम पर केवल उनकी ही पकड़ हो, और विपक्ष की आवाज सुनाई न पड़ने पाए। मीडिया पर तो बीजेपी का कब्जा हो ही चुका है। अब वह नमो टीवी और मोदी बायोपिक जैसे माध्यमों से जनता को प्रभावित कर असल मुद्दों से भटकाने की संपूर्ण घोषणा कर रहे हैं। सिविल सोसायटी को ऐसे प्रचार से जनता को सचेत करने की आवश्यकता है।
फिर बीजेपी की रणनीति है कि पैसों की रेल-पेल से गरीब का वोट खरीद लो। जो देता है वह भले ही ले लो, पर वोट केवल अपने स्वयं के भले के लिए ही डालें। फिर बीजेपी अपने विपक्षियों के लिए दंड की रणनीति का भी उपयोग कर रही है। इनकम टैक्स और ईडी विभाग आए दिन विपक्ष के नेताओं के घरों और दफ्तरों पर धावे बोल रहे हैं। इसका अर्थ यही है कि जो हमारे विरुद्ध है, हम सरकारी तंत्र का उपयोग कर उसको दंड देंगे।
ऐसी खबरें मिलने पर मोदी के भाषणों पर यकीन करने के बजाय अपने चिंतन से फैसला करें कि इन हरकतों के पीछे सरकार की मंशा क्या है। याद रखिए कि 2014 में ‘मोदी लहर’ के समय की बीजेपी को कुल 31 प्रतिशत वोट मिले थे। 2019 का मोदी खोखला हो चुका है। नोटबंदी और जीएसटी की मार देने वाले मोदी का स्वरूप जनता समझ चुकी है।
अतः यह स्पष्ट है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी का वोट प्रतिशत 31 से बहुत घट जाएगा। परंतु भारतीय लोकतंत्र की परंपरा के अनुसार उसी पार्टी को सरकार बनाने का पहला अवसर मिलेगा जो चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी घोषित होगी। अतः इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि बीजेपी अव्वल दर्जे की पार्टी न बन जाए। क्योंकि धन और पैसे की रेल-पेल से ऐसी अवस्था में मोदी सरकार बना सकते हैं।
अब यह काम होने से कैसे रोका जा सकता है। इसका सीधा सा उपाय यह है कि बीजेपी विरोधी वोट का विभाजन हरगिज नहीं होना चाहिए। इस संबंध में कांग्रेस देशव्यापी पार्टी होने के नाते आपकी प्रथम पसंद कांग्रेस ही होनी चाहिए। फिर वोट न बंटे इसके लिए कांग्रेस ने तमिलनाडु, कर्नाटक, बिहार, झारखंड में चुनावी तालमेल किए हैं। ऐसे प्रदेशों में कांग्रेस और उसके सहयोगियों को ही वोट डालिए।
जिन प्रदेशों में क्षेत्रीय पार्टियां सबल हैं और बीजेपी को हरा सकती हैं, वहां उनको सफल बनाया जा सकता है। क्योंकि यह एक पार्टी के जीतने का नहीं अपितु देश को जीताने का चुनाव है। अतः देश को जिताइए। बस एक बात याद रखें कि आपका वोट बंटने न पाए। कभी-कभी बीजेपी अल्पसंख्यकों को भ्रमित करने के लिए उनके धर्म के कई व्यक्तियों को चुनाव में खड़ा कर देती है। अल्पसंख्यकों को भी बहुत सोच समझकर अपना वोट बंटने से बचाना होगा। परंतु यह काम सोच विचार के साथ एक रणनीति के तहत होना चाहिए।
अब स्पष्ट है कि नरेंद्र मोदी की हवा निकल चुकी है। झूठे चुनावी सर्वे के विपरीत जमीनी स्थिति यह है कि बीजेपी के पैरों तले जमीन खिसक रही है। बीजेपी के झूठे प्रचार से भ्रमित हुए बिना थोड़ी सी सूझबूझ एवं एकजुटता के साथ बीजेपी की 2019 में सत्ता वापसी निःसंदेह रोकी जा सकती है।
(ज़फ़र आग़ा)