केरल कांग्रेस ने पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी को वायनाड से लोकसभा चुनाव लड़ने का नियंत्रण दिया है. लेकिन राहुल गांधी अभी इस बारे में कोई फ़ैसला नहीं ले सके हैं.केरल कांग्रेस के कार्यकर्ता इस देरी को अपने चुनाव अभियान के लिए झटका मान रहे हैं. केरल की सभी लोकसभा सीटों पर 23 अप्रैल को मतदान होगा.नाम न लेने की शर्त पर एक नेता ने बताया कि पार्टी के इस बारे में फ़ैसला लेने में हो रही देरी से कार्यकर्ता परेशान हैं.
कांग्रेस और उसके प्रवक्ता इस बात के पर्याप्त संकेत दे चुके हैं कि राहुल गांधी शायद वायनाड के लिए अपने गढ़ अमेठी को ना छोड़ें. अमेठी में राहुल के सामने केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी हैं.
विश्लेषकों का मानना है कि केरल में कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ़) के लिए चुनाव अभियान की शुरुआत ‘काफ़ी अनुकूल’ रही लेकिन राहुल गांधी की उम्मीदवारी को लेकर अनिश्चितता ने प्रतिद्वंदी एलडीएफ़ गठबंधन को बराबरी पर ला खड़ा किया है.
राजनीतिक विश्लेषक केजे जैकब ने बीबीसी हिंदी से कहा, “इस अनिश्चितता ने सीपीएम को अपने विधायकों में से आधा दर्जन नए चेहरे चुनकर लोकसभा उम्मीदवार बनाने का मौका दे दिया है. इनमें से कम कम से कम पांच की साख काफ़ी अच्छी है और लेफ़्ट की पूरी मशीनरी बिलकुल स्पष्टता से काम कर रही है.”
स्तंभकार जॉर्ज पोडीपारा का कहना है, “वो लड़ेंगे या नहीं लड़ेंगे बात ये नहीं है, मसला है इसे लेकर अनिश्चितता का और पार्टी के कार्यकर्ता और नेता इसी बात से परेशानी में हैं.”
लेकिन कांग्रेस के महासचिव और केरल के पूर्व मुख्यमंत्री ओमान चांडी को विश्वास है कि उनकी पार्टी ही राज्य में सर्वाधिक सीटें जीतेगी. चांडी ने ही सबसे पहले कहा था कि राहुल गांधी को केरल से चुनाव लड़ना चाहिए.
चांडी की राय से बहुत से विश्लेषक नाइत्तेफ़ाकी नहीं रखते हैं. लेकिन चुनावी अभियान की कई सतहें हैं और इनमें कई मुद्दे हैं, जिनमें सबरीमला के चुनावी मुद्दे के तौर पर इस्तेमाल और प्रधानमंत्री मोदी का केरल में सबसे लोकप्रिय चेहरा न होना भी शामिल हैं. मोदी कई अन्य राज्यों में देश का सबसे पसंदीदा चेहरा हैं.
वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार बीआरपी भास्कर कहते हैं, “इसकी वजह ये है कि पारंपरिक तौर पर, केरल को लोग कांग्रेस को केंद्र की सत्ता चलाने के लिए योग्य मानते रहे हैं, लेकिन जब राज्य में चुनाव होते हैं तो लोग हर पांच साल में सीपीएम के एलडीएफ़ और कांग्रेस के यूडीएफ़ की सत्ता बदलते रहते हैं. स्थानीय निकाय चुनावों में यहां के लोग सीपीएम को ही चुनते रहे हैं.”
भास्कर के तर्क से सहमत जॉर्ज कहते हैं, “अल्पसंख्यक (मुसलमान और ईसाई) सभी सीटों पर तीस प्रतिशत से अधिक हैं. ज़ाहिर है, मतदाता दिल्ली में एक धर्मनिरपेक्ष दल की सरकार चाहते हैं. बीजेपी को सिर्फ़ सबरीमला मुद्दे से फ़ायदा मिल रहा है लेकिन इसका असर भी दक्षिणी ज़िलों की चुनिंदा सीटों पर ही है.”
बीजेपी के प्रांतीय अध्यक्ष श्रीधरन पिल्लाई कहते हैं, “हां, सबरीमला थीरूवनंतपुरम, थ्रिसूर और पतनमथिट्टा में एक मुद्दा है. इसका असर होगा ही लेकिन हर ज़िला यूनिट ये तय करेगी कि सबरीमला मुद्दे को ज़्यादा तरजीह देनी है या मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने को.”
पिल्लई कहते हैं, “हमारे कार्यकर्ताओं पर हुआ अत्याचार ही हमारा मुख्य मुद्दा रहेगा.” भगवान अयप्पा को समर्पित सबरीमला मंदिर पतनमथिट्टा लोकसभा क्षेत्र में ही आता है. यहां से पार्टी ने के सुरेंद्रन को अपना उम्मीदवार बनाया है.
सुरेंद्र ने सबरीमला में महिलाओं को प्रवेश देने के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया था और उन्हें क़रीब एक महीना जेल में भी रहना पड़ा. उन पर महिला श्रद्धालुओं को मंदिर में जाने से रोकने के आरोप थे.
बीजेपी ने सबरीमला कर्म समिति जैसे संगठनों के साथ मिलकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने 28 सितंबर को अपने फ़ैसले में महिला श्रद्धालुओं को सबरीमला मंदिर में प्रवेश की अनुमति दे दी थी. इस प्राचीन मंदिर में सदियों से महिलाओं के प्रवेश पर रोक रही है.
बीजेपी को इस बार पतनमथिट्टा और थीरूवनंतपुरम से काफ़ी उम्मीदें हैं. यहां प्रभावशाली नायर जाति समूह से जुड़ी नायर सर्विस सोसायटी बीजेपी का समर्थन कर रही है.भास्कर कहते हैं, “सबरीमला मुद्दे से पैदा हुए मौके को बीजेपी ने हिंसक प्रदर्शन करके गंवा दिया है. इस मुद्दे पर प्रदर्शनों की कमान नेताओं के नहीं बल्कि कुछ शरारती तत्वों के हाथ में थी.”
चांडी कहते हैं, अब सब कह रहे हैं कि यूडीएफ़ का रुख़ ही सही था. दरअसल यूडीएफ़ ने सबरीमला मुद्दे पर यू-टर्न ले लिया था.कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत किया था लेकिन राज्य यूनिट का कहना था कि परंपराओं का सम्मान होना चाहिए. पार्टी का ये रवैया बीजेपी और उसके अन्य सहयोगी दलों से अलग नहीं था.
लेकिन बाद में बीजेपी ने महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसक प्रदर्शन किए, जिन महिलाओं पर हमले हुए उनमें से कुछ तो तय सीमा से ऊपर की थीं. वो महिलाओं जो पचास साल से अधिक उम्र की हैं और मंदिर जा सकती हैं उनके शब्दों में कहा जाए तो ये उत्पीड़न था.
अगर सीपीएम के नज़रिए से देखा जाए तो पलक्कड़ से पार्टी के सांसद एमबी राजेश कहते हैं, “हमारा मानना है कि सबरीमला मुद्दा नहीं है. हमारा अभियान काफ़ी आगे है और हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल रही है. राज्य सरकार के कामकाज का भी अच्छा असर हो रहा है.”
जैकब कहते हैं, “राज्य में माहौल भी एलडीएफ़ की सरकार के ख़िलाफ नहीं बना है. असल में एलडीएफ़ कांग्रेस नेता टॉम वडक्कन के बीजेपी में जाने का भी फ़ायदा उठाने की कोशिश कर रही है. केवी थॉमस को एरनाकुलम का टिकट न देने की भी फ़ायदा उठाने की कोशिश की जा रही है.”
ये आज की स्थिति है. केरल में चुनाव तीन सप्ताह बाद है. ये कहा जाता रहा है कि राजनीति में एक सप्ताह लंबा वक़्त होता है.अभी तो ऐसा लगता है कि केरल में एक दो सीटों को छोड़कर मुख्य मुक़ाबला कांग्रेस के यूडीएफ़ और सीपीएम के एलडीएफ़ के बीच ही है.