मोदी सरकार को लोकपाल नियुक्त करने में पांच साल का समय लग गया हो, लेकिन लोकसभा चुनाव से ठीक पहले इस पद पर सेवानिवृत्त जज जस्टिस पिनाकी चंद्र घोष की नियुक्ति कर विपक्ष के एक बड़े मुद्दे की धार कुंद कर दी है। पहले विपक्ष लोकपाल की नियुक्ति नहीं करने को बड़ा मुद्दा बना रहा था। हालांकि अब विपक्ष पांच साल की देरी को लेकर सरकार पर सवाल खड़े करेगा। दरअसल, यूपीए-2 सरकार के दौरान एक के बाद एक भ्रष्टाचार से जुड़े मामले सामने आने से लोगों में नाराजगी बढ़ रही थी। इसी दौरान लोकपाल को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे और योग गुरु बाबा रामदेव के आंदोलन ने देश भर में यूपीए सरकार के खिलाफ माहौल बनाया। जाहिर तौर पर तब नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने भ्रष्टाचार के मोर्चे पर लोगों की नाराजगी को वर्ष 2014 के आम चुनाव में आराम से भुना लिया।
यूपीए सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ बनी धारणा के बीच लोगों ने पीएम उम्मीदवार के तौर पर मोदी को हाथों हाथ लिया और भाजपा गैरकांग्रेसी पार्टी के तौर पर अपने दम पर बहुमत हासिल करने वाली पहली पार्टी बन गई।
हालांकि सत्ता में आने के बाद जनवरी 2014 में लागू लोकपाल-लोकायुक्त बिल पारित होने के बावजूद मोदी सरकार अपने कार्यकाल में लोकपाल नियुक्त नहीं कर पाई। जाहिर तौर पर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर सवार हो कर सत्ता में आई मोदी सरकार इस मुद्दे पर लगातार विपक्ष का निशाना बन रही थी। जब तक लोकपाल की नियुक्ति नहीं हुई थी, तब तक विपक्ष के आरोपों को बल मिल रहा था, क्योंकि मोदी सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ वातावरण को अपने पक्ष में कर सत्ता में आई थी। वर्ष 2014 में लोकपाल चुनिंदा बड़े मुद्दों में से एक था। अब जबकि मोदी सरकार ने अंतिम समय में लोकपाल की नियुक्ति की प्रक्रिया पूरी कर दी है, तब विपक्ष को इस मुद्दे पर हमले की रणनीति में बदलाव करना होगा।
लोकपाल की नियुक्ति में देरी पर नाराजगी जताते हुए एक गैरसरकारी संस्था कॉमन कॉज ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ ने 7 मार्च की सुनवाई में लोकपाल की नियुक्ति में हो रही देरी पर गहरी नाराजगी जताई। बेंच ने सरकार ने देरी का कारण पूछते हुए 15 दिनों केअंदर जवाब मांगा। इससे पहले भी सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी महीने में इस मामले में सरकार को फटकार लगाई थी।
लोकपाल केंद्रीय सतर्कता आयोग के साथ मिलकर काम करेगा। सीबीआई समेत किसी भी जांच एजेंसी को आरोपों की जांच करने का आदेश देने का अधिकार होगा। प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, सांसद और सभी तरह के कर्मचारी जांच के दायरे में आएंगे।
जस्टिस घोष ने अपने सुप्रीम कोर्ट कार्यकाल के दौरान कई अहम फैसले दिए। वह तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रही जयललिता की करीब शशिकला को आय से अधिक संपत्ति मामले में सजा सुना कर देश भर में चर्चा में आए। उन्होंने शशिकला समेत बाकी आरोपियों को दोषी करार देने के निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। हालांकि फैसला सुनाए जाने से पहले तक जयललिता की मौत हो चुकी थी।
जस्टिस घोष के अहम फैसले :
– अयोध्या में विवादित ढांचा विध्वंस मामले में जस्टिस रोहिंग्टन के साथ पीठ में रहते हुए निचली अदालत को भाजपा नेता लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह और बाकी नेताओं पर आपराधिक साजिश की धारा के तहत आरोप तय करने का आदेश दिया था।
– जस्टिस घोष, चीफ जस्टिस एच एल दत्तू और जस्टिस कलीफुल्ला के साथ उस पीठ के भी सदस्य थे, जिसने तय किया था कि सीबीआई की ओर से दर्ज मुकदमे में दोषी ठहराए गए राजीव गांधी के दोषियों की सजा माफी का अधिकार राज्य सरकार को नहीं है।
– जस्टिस राधाकृष्णन के साथ पीठ में रहते हुए उन्होंने जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ जैसी परंपराओं को पशुओं के प्रति क्रूरता मानते हुए उन पर रोक लगाई।
– अरुणाचल में राष्ट्रपति शासन के फैसले को पलटते हुए वहां पहले की स्थिति को बहाल करने वाली संविधान पीठ में भी शामिल रहे। सरकारी विज्ञापनों के लिए दिशा निर्देश तय करने वाली बेंच के भी वो सदस्य थे।
‘देश के पहले लोकपाल नियुक्त करने के फैसले का स्वागत करता हूं। इसके लिए लोगों के आंदोलन की आखिरकार जीत हुई।’- अन्ना हजारे, समाजसेवी