उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन से दरकिनार किए जाने के बाद कांग्रेस अब अपनी सियासी लड़ाई खुद के सहारे लड़ने को तैयार है. पार्टी अपनी राजनीतिक जमीन को मजबूत करने में जुट गई है. इसी कड़ी में कांग्रेस महासिचव कांग्रेस महासचिव और पूर्वांचल की प्रभारी प्रियंका गांधी वाड्रा ने बुधवार को मेरठ जाकर पश्चिम उत्तर प्रदेश में दलित युवाओं के बीच तेजी से उभरते भीम आर्मी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद से मुलाकात की. यही नहीं, बसपा के लिहाज से मजबूत मानी जाने वाली सीटों पर कांग्रेस ने अभी तक जिस तरह से उम्मीदवार उतारे हैं. उससे साफ है कि मायावती बनाम प्रियंका के बीच की सियासी जंग की जमीन तैयार हो चुकी है.
प्रियंका गांधी कांग्रेस के परंपरागत वोटबैंक को एकजुट करने में जुटी है. इनमें उनकी नजर दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम मतदाताओं पर है. सूबे में करीब 22 फीसदी दलित, 20 मुस्लिम और 10 फीसदी ब्राह्मण समुदाय के वोटर है. अस्सी के दशक तक कांग्रेस के साथ दलित मतदाता मजबूती के साथ जुड़ा रहा, लेकिन बसपा के उदय के साथ ही ये वोट उससे छिटकता ही गया. ऐसे ही मुस्लिम मतदाता भी 1992 के बाद कांग्रेस से हटकर सपा के साथ जुड़ गया और ब्राह्मण बीजेपी के साथ चला गया. इसका नतीजा रहा कि कांग्रेस पहले नंबर से चौथे नंबर की पार्टी बनकर रह गई.
दिलचस्प बात ये है कि बसपा भी इन्हीं तीन वर्गों के मतों के सहारे में यूपी में बीजेपी को मात देने के लिए अखिलेश यादव से हाथ मिलाकर चुनावी रण में उतरी है. बसपा के खाते में 38 सीटें आई हैं, इनमें से 33 सीटों पर उम्मीदवारे नाम तय कर दिए गए हैं. बसपा ने 6 मुस्लिम, 7 ब्राह्मण,1 क्षत्रिय,1 जाट, 2 गुर्जर,1 भूमिहार, 9 दलित, 3 वैश्य और 4 अन्य पिछड़ा वर्ग से उम्मीदवार बनाए हैं. हालांकि श्रावस्ती, जौनपुर, आंवला और मछलीशहर (सु) की सीटों पर अभी नाम तय नहीं हुए हैं.
सूत्रों की मानें तो उत्तर प्रदेश में गठबंधन में कांग्रेस की राह में रोड़ा अखिलेश नहीं बल्कि मायावती बनी है. यही वजह है कि कांग्रेस अब इसका करारा जवाब देने की रणनीति के तहत कदम उठा रही है. इस कड़ी में प्रियंका ने दलित युवा चेहरा चंद्रशेखर से मुलाकात की है.
प्रियंका ने चंद्रशेखर से मुलाकात करके दलितों को बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. अब भले ही प्रियंका कह रही हों कि इस मुलाकात को सियासी चश्मे से न देखा जाए, लेकिन प्रियंका का चंद्रशेखर से मुलाकात में राजनीतिक निहितार्थ छिपे हुए हैं. पश्चिम यूपी में दलित समुदाय के युवाओं के बीच चंद्रशेखर का अच्छा खासा ग्राफ है. कांग्रेस गुजरात के जिग्नेश मेवाणी की तरह ही चंद्रशेखर को यूपी में इस्तेमाल करना चाहती है.
कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि वह यूपी में बड़ी मजबूती के साथ चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस ने यूपी में अभी तक अपने 23 उम्मीदवारों का ऐलान किया है. पहली लिस्ट में 11 और बुधवार को जारी हुई दूसरी लिस्ट में 16 उम्मीदवार के नाम थे. कांग्रेस के लिस्ट को देखें तो साफ है कि सपा-बसपा से गठबंधन के बाद मायावती जिन सीटों को मजबूत मानकर चल रही है. वहीं, पर कांग्रेस ने भी मजबूत प्रत्याशी पर दांव लगाया है. कांग्रेस ने खासकर बसपा के मुस्लिम और ब्राह्मण उम्मीदवार के खिलाफ.
पश्चिम यूपी के सहारनपुर सीट बसपा की काफी मजबूत मानी जा रही है. बसपा ने यहां हाजी फजलुर्रहमान पर भरोसा जताया तो कांग्रेस ने कट्टर छवि के इमरान मसूद को उतारा है. ऐसे में ही सीतापुर लोकसभा सीट से बसपा ने नकुल दूबे को उतारा तो कांग्रेस ने पूर्व सांसद कैसर जहां पर दांव लगाया है. धौरहरा सीट पर बसपा ने इलियास आजमी के बेटे अरशद आजमी को प्रत्याशी बनाया है तो कांग्रेस ने पूर्व सांसद जितिन प्रसाद को उतारा है.
फतेहपुर से बसपा ने सुखदेव प्रसाद वर्मा को उतारा तो कांग्रेस ने पूर्व सांसद राकेश सचान पर दांव लगाया. सुल्तानपुर से बसपा के चन्द्रभद्र सिंह के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व सांसद संजय सिंह को प्रत्याशी बनाया. अकबरपुर से बसपा की निशा सचान हैं तो कांग्रेस ने राजा रामपाल को उतारा है. संतकबीर नगर से बसपा के कुशल तिवारी के खिलाफ कांग्रेस ने परवेज खान को उतारा है. मोहनलालगंज से बसपा के सी एल वर्मा के सामने कांग्रेस ने पूर्व सांसद रामशंकर भार्गव. प्रतापगढ़ से बसपा के अशोक त्रिपाठी के खिलाफ कांग्रेस ने पूर्व सांसद रत्ना सिंह को उतारा है. बांसगांव से बसपा ने दूधराम को मैदान में उतारा है, जबकि कांग्रेस पूर्व आईपीएस अफसर कुश सौरभ पासवान पर दांव खेल रही है.
दरअसल, सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने पूरी तरह से तय कर लिया है किया है कि बसपा को अब वो किसी भी सूरत में कोई वॉकओवर देने के मूड में नहीं है बल्कि उसके सामने मजबूत कैंडिडेट उतारकर आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार है. बताया जा रहा है कि मायावती सपा के साथ मिलकर चुनाव तो लड़ रही हैं, लेकिन उनकी कोशिश है कि सूबे की सबसे ज्यादा सीटें उनकी ही पार्टी जीते. लेकिन कांग्रेस ने जिस तरह से जाल बुना है, उसमें बसपा का ख्वाब चूर भी हो सकता है और पार्टी तीसरे और चौथे नंबर पर भी सिमट सकती है. अगर ऐसे होता है तो चुनाव के बाद पीएम पद को लेकर मायावती की दावेदारी खत्म हो जाएगी. इससे साफ जाहिर है कि सूबे की सियासी रण में मायावती का मुकाबला प्रियंका गांधी से सीधे तौर पर हो रहा है.