ग्यारह फ़रवरी को कांग्रेस की पूर्वी उत्तर प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी रोड शो कर रही थीं, राहुल गांधी हाथ में खिलौना लड़ाकू विमान लेकर जनता को मुद्दे की याद दिला रहे थे, कुछ लोग कह रहे थे कि ‘हवा बदल रही है, बीजेपी दबाव में दिख रही है’.
इसके तीन दिन बाद 14 फ़रवरी को पुलवामा के हमले से पूरा देश सकते में आ गया, प्रियंका गांधी ने अपनी प्रेस कॉन्फ़्रेंस यह कहते हुए रद्द कर दी कि ‘ऐसे मौक़े पर राजनीति की बात करना ठीक नहीं है.’
हमले के बाद पूरा देश जिस तरह के सदमे में डूब गया, उससे कांग्रेस पार्टी शायद अभी तक नहीं उबर पाई है, जबकि बीजेपी पूरे जोश के साथ जल्दी ही चुनावी रंग में आ गई.
पुलवामा के हमले के बाद राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी इस मामले में “सरकार के साथ है”. यह सवाल कि इस हमले को रोकने की ज़िम्मेदारी किसकी थी? और इस हमले की टाइमिंग की बात करने की हिम्मत राहुल गांधी नहीं दिखा पाए, यह पहल करके ममता बनर्जी ने एक बार फिर बीजेपी-विरोधी गठबंधन का नेतृत्व हथिया लिया है.
अगर आप 14 फ़रवरी के बाद की राजनीतिक हलचलों को देखें तो आपको साफ़ दिखेगा बीजेपी पूरी सक्रियता के साथ चुनावी अभियान चला रही है जबकि कांग्रेस का पिछले हफ़्ते वाला जोश काफ़ूर है. कांग्रेस शायद रुककर देखना चाहती है कि पुलवामा कांड कैसे आगे बढ़ेगा, उसे यह भी दिख रहा है कि इस हमले के बाद लोगों में बहुत गुस्सा है जिसे अपने पक्ष में मोड़ने की कोई तरकीब उसे नहीं दिख रही है.
दूसरी ओर, बीजेपी बड़ी सहजता से देशभक्ति, सेना, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, मोदी, वंदे मातरम, भारत माता की जय जैसे पुराने नारों पर लौट आई है. रोज़गार, विकास, राफ़ेल की बात अभी कोई सुनने को तैयार नहीं दिख रहा, ऐसे में कांग्रेस के पास बीजेपी के सुर में सुर मिलाने या चुप रहने के अलावा इस वक्त कोई और चारा भी नहीं है.
पंजाब में कांग्रेस के नेता नवजोत सिंह सिद्धू ने सिर्फ़ इतना कहा था कि “आतंकवाद का कोई देश, मज़हब, ज़ात नहीं होता.” इस पर उन्हें तीखे हमलों का सामना करना पड़ा है, उन्हें अकेले ही अपना बचाव करना पड़ा है, कांग्रेस का कोई नेता उनके बचाव में नहीं आया कि उन्होंने कोई ग़लत बात नहीं कही है.
मंगलवार को तमिलनाडु में बीजेपी और एआईडीएमके के गठबंधन का ऐलान किया गया, पलानीस्वामी और बीजेपी के वरिष्ठ नेता पीयूष गोयल ने प्रेस को संबोधित किया. तमिलनाडु में बीजेपी पांच लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
इससे पहले सोमवार को बीजेपी-शिव सेना ने काफ़ी तनातनी और रूठने-मनाने के खेल के बाद, गठबंधन में चुनाव लड़ने का ऐलान किया था. एक-दूसरे को पटकने और मुंह तोड़ने की धमकी देने वाले नेताओं ने एक-दूसरे का हाथ थामकर मुस्कुराते हुए फ़ोटो खिंचाए. महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से बीजेपी 25 और शिव सेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
अमित शाह और पीयूष गोयल जहां पूरी सक्रियता के साथ राजनीतिक गतिविधियों में जुटे दिखे, वहीं प्रियंका गांधी और राहुल गांधी, अखिलेश, मायावती या दूसरे विपक्षी नेता भी चुप बैठे ही नज़र आ रहे हैं.
प्रधानमंत्री मोदी उत्तर प्रदेश में झांसी में, महाराष्ट्र में धुले में और बिहार में बरौनी में जनसभाओं को संबोधित कर चुके हैं और ‘वंदे भारत’ सहित कई परियोजनाओं का उदघाटन और शिलान्यास भी किया है. पुलवामा पर राजनीति न करने की बात करने वाली बीजेपी के वरिष्ठ नेता और रेल मंत्री ने कहा कि यह ट्रेन “आतंकवादियों को जवाब है.” इसी तरह पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने असम में चुनावी सभा को संबोधित किया, पुलवामा हमले का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, “यह यूपीए की सरकार नहीं है.”
चुनावी सभाओं का सिलसिला जारी रखते हुए बुधवार को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ओड़िसा के पिछड़े ज़िले कालाहांडी में ‘आतंकवाद के ख़िलाफ़ सिंह गर्जना’ करेंगे.
जिस शाम पुलवामा से मरने वाले सैनिकों की बढ़ती तादाद की ख़बर आ रही थी, उस शाम दिल्ली बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मनोज तिवारी प्रयागराज में बीजेपी के लिए न सिर्फ़ वोट माँग रहे थे बल्कि संगीत का कार्यक्रम भी कर रहे थे, जिसके लिए उनकी आलोचना हुई है.
राहुल गांधी ने पुलवामा के हमले के बाद छत्तीसगढ़ में एक जनसभा को संबोधित किया और बीजेपी छोड़कर आए कीर्ति आज़ाद का पार्टी में स्वागत किया, इसके अलावा राजनीतिक तौर पर वे चुप्पी साधे हुए दिख रहे हैं. प्रियंका गांधी पुलवामा की घटना के बाद लोगों से मिल-जुल तो रही हैं लेकिन उन्होंने मंच से या प्रेस से कुछ कहने का जोखिम नहीं लिया.
14 फ़रवरी से पहले तक बीजेपी विपक्ष को हमलों पर पटलवार करते हुए विकास की बात कर रही थी, विश्व हिंदू परिषद और संघ ने पहले ही ऐलान कर दिया था कि राम मंदिर पर चुनाव हो जाने तक कोई आंदोलन नहीं होगा.
पांच दिन पहले तक लग रहा था कि 2019 के आम चुनाव का एजेंडा सेट करने की पहल विपक्ष ने ले ली है, लेकिन पुलवामा हमले के बाद बीजेपी आक्रामक तेवर दिखा रही है क्योंकि पाकिस्तान के ख़िलाफ़ देशभक्ति की बातें करने का उसका ट्रैक रिकॉर्ड काफ़ी अच्छा है, पार्टी देशभक्ति को हिंदुत्व का पर्यायवाची शब्द बनाने में कामयाब हो गई है. दूसरी तरफ़, पाकिस्तान, मुसलमान, कश्मीरी, देशद्रोही वगैरह भी ज़रूरत के हिसाब से आसानी से बदलकर इस्तेमाल किए रहे हैं.
ऐसे माहौल में विपक्ष को अपनी रणनीति पर नए सिरे से विचार करना होगा, पुलवामा का मामला इतनी आसानी से ठंडा नहीं होने वाला है, किसी जवाबी कार्रवाई को बीजेपी अपने नेतृत्व की कामयाबी के तौर पर पेश करने से नहीं हिचकेगी. ऐसी हालत में चुनाव से पहले किसी तरह की टिप्पणी भी विपक्ष के लिए मुश्किल होगी, आपको याद होगा उड़ी के हमले के बाद हुए ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ पर सवाल करने वाले अरविंद केजरीवाल को कितनी कटुता का सामना करना पड़ा था.
विपक्षी एकता को ‘महाठगबंधन’ कहने वाली बीजेपी ने बड़ी शान से एआईडीएमके और शिव सेना से गठबंधन का ऐलान किया है, जबकि बीजेपी के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लड़ने की बात करने वाले खेमे में फ़िलहाल सन्नाटा है.
राजेश प्रियदर्शी
(बीबीसी से साभार)