आज राज्यसभा में नागरिकता संसोधन बिल पेश किया जाएगा. ये बिल पिछले काफी दिनों से उत्तर- पूर्व राज्यों में भारी विरोध झेल रहा है. दरअसल इससे पहले ये बिल 8 जनवरी को लोकसभा में पास कराया गया था. जिसके बाद से इस बिल का काफी विरोध हो रहा है.
बीजेपी शासित पूर्वोत्तर के दो राज्यों अरुणाचल प्रदेश और मणिपुर के मुख्यमंत्रियों ने नागरिकता संशोधन विधेयक का विरोध किया है. सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह के साथ 30 मिनट तक चली मुलाकात में अरुणाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री पेमा खांडू और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने अनुरोध किया कि ये विधेयक राज्यसभा से पारित न हो. राजनाथ सिंह ने दोनों मुख्यमंत्रियों को आश्वस्त किया कि पूर्वोत्तर के स्वदेशी लोगों के अधिकार किसी भी सूरत में प्रभावित नहीं होंगे.
इससे पहले लोकसभा में इस बिल को पेश करते समय राजनाथ सिंह ने कहा था कि नागरिकता विधेयक के संबंध में गलतफहमी पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है और असम के कुछ भागों में आशंकाएं पैदा करने की कोशिक हो रही है. उन्होंने कहा था कि यह विधेयक सिर्फ असम के लिए नहीं है बल्कि ऐसे हजारों लोगों के लिये है जो पश्चिमी सीमा से आकर दिल्ली, गुजरात और अन्य स्थानों पर रह रहे हैं . यह सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में लागू होगा. इसके पीछे सोच यह है कि उत्पीड़न के शिकार प्रवासी देश के किसी हिस्से में रह सकें.
यह बिल, नागरिकता कानून 1955 में संशोधन के लिए लाया गया है. इस बिल के कानून बनने के बाद, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्म के मानने वाले अल्पसंख्यक समुदायों को 12 साल के बजाय छह साल भारत में गुजारने पर और बिना उचित दस्तावेजों के भी भारतीय नागरिकता मिल सकेगी.