क्रांति कुमार पाठक
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र अगले चंद महीनों में होने जा रहे 5 राज्यों के चुनावों के साथ फिर से इलेक्शन मोड में आ गया है। सच कहें तो भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है जहां हर साल बल्कि हमेशा कहीं न कहीं और कोई न कोई चुनाव होते ही रहते हैं। इन पर होने वाले भारी भरकर खर्च के लिहाज से भले ही लोगों की अलग अलग राय हो, लेकिन जनता के द्वारा जनता के हाथों, जनता की हर स्तर की सरकार बनाने की जो रीत अपने देश में है, सच में अनूठी है और दुनिया के कई दूसरे देशों के लिए आश्चर्य और विश्वास का विषय भी। कई मौकों पर तानाशाही के आरोपों से घिरी मजबूत और दंभी सरकारों को इसी लोकतंत्र ने न केवल गिराकर दिखाया बल्कि सक्षम या बहुमत के हाथों में सत्ता की बागडोर न पहुंच पाने के चलते जल्दी-जल्दी और जबरदस्त उलट-पलट का दौर भी देखा। शायद भारत ही इकलौता ऐसा देश है जहां बहुमत, अल्पमत और मिली- जुली सरकारों के हाथों में भी सुरक्षित जनतंत्र के सच पर कभी आंच तक नहीं दिखी। बस यही खूबी भारत को दुनिया से अलग करती है और लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत करती है।
साल भर से चल रहे किसान आंदोलन और इसके चलते तीनों कृषि कानूनों की वापसी के बाद उत्तर प्रदेश और पंजाब पर सबकी खास निगाहें हैं। बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कृषि कानूनों की वापसी का कार्ड कितना सटीक होगा यह उत्तर प्रदेश और पंजाब में 2022 के विधानसभा चुनाव नतीजों से ही मिलेगा।
भारतीय जनता पार्टी के अन्दरखाने में भी इस वापसी पर जबरदस्त क्रिया-प्रतिक्रिया तो समझ आ रही है लेकिन बाहर ज्यादा सुगबुगाहट दिख नहीं रही है। हालांकि मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती जो अपनी बेबाकी के लिए जानी जाती हैं ने दो टूक कह कर सबको चकित कर दिया है जिसमें उन्होंने कहा कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब तीनों कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा की तो मैं अवाक रह गई और व्यथित हूं। कृषि कानूनों की महत्ता नहीं समझा पाना हम सब कार्यकर्ताओं की कमी है। हम क्यूं नहीं किसानों से ठीक से सम्पर्क एवं संवाद कर पाए? नरेंद्र मोदी गहरी सोच एवं समस्या की जड़ को समझने वाले प्रधानमंत्री हैं। भारत की जनता और नरेंद्र मोदी का आपस का समन्वय, विश्व के राजनीतिक, लोकतांत्रिक इतिहास में अभूतपूर्व है। कृषि कानूनों के संबंध में विपक्ष के निरंतर दुष्प्रचार का सामना भी हम नहीं कर सके। लेकिन मेरे नेता ने कानूनों को वापस लेते हुए भी अपनी महानता स्थापित की है। यकीनन कहीं न कहीं हवा के रुख को भांपा गया है।
कृषि कानूनों की वापसी के पहले 30 अक्टूबर को हुए उपचुनावों के नतीजे भी काफी हैरान करने वाले रहे। जिसमें 14 राज्यों के 3 लोकसभा और 29 विधानसभा के उपचुनावों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को 15 विधानसभा सीट और 1 लोकसभा सीट पर जीत मिली। हो सकता है इसका ईमानदार विश्लेषण किया गया हो। प्रधानमंत्री नरेंद्र ने बिना झिझक सच्चाई को स्वीकार हो और कृषि कानूनों की वापसी के फैसले पर अपने बेलाग अंदाज से ही बड़ा संदेश दिया हो। यह बात अलग है कि इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे? लेकिन फिलहाल भारतीय राजनीति में भूचाल जैसी स्थिति अवश्य आ गई है। इधर किसान भी झुकते नहीं दिख रहे हैं। संसद से कानून वापसी के बाद राजनीति की दिशा क्या होगी यह पूर्वानुमान बेमानी होगा। किसान इसे अपनी जीत समझ रहे हैं तो, विपक्षी सरकार की हार मान रहे हैं।कुल मिलाकर सारा कुछ फिर उसी लोकतंत्र की कसौटी पर कसने के लिए तैयार दिख रहा है, जिसकी दुंदुभी अगले साल की शुरुआत में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव से बजेगी। इसके लिए वक्त बहुत कम है। लेकिन धड़कने सबकी बढ़ी हुई है।
राजनीतिक पंडितों ने 30 अक्टूबर के उपचुनावों को बड़ा संकेत माना है, लेकिन जब इन कृषि कानूनों का मामला उच्चतम न्यायालय गया था तो उसने कानूनों की संवैधानिक वैधता जांचे बिना उनके अमल पर रोक लगा बहुत बड़ा बल्कि कहें क्रांतिकारी कदम उठाया और तय किया कि कानून की वैधता जांचे बिना किसान संगठनों को अपना पक्ष रखने के लिए बुलाया जाए। लेकिन किसान नहीं गए।
अब इन्हीं कानूनों की वापसी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बड़ा दांव जरुर फेंक दिया है। शह और मात की राजनीति के खेल में 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद गुजरात और हिमाचल प्रदेश तो 2023 में 8 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं। मार्च में पूर्वोत्तर के तीन राज्यों मेघालय, नागालैंड और त्रिपुरा, मई में कर्नाटक और दिसंबर में मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना जैसे बड़े राज्यों के विधानसभा चुनाव होने हैं। जाहिर है 2024 के लोकसभा चुनावों की तैयारियों तक राज्यों के चुनावों की झड़ी सामने दिख रही है। कृषि कानूनों से इतर ममता बनर्जी की सफलता और अब केंद्र में निगाह और पूर्वोत्तर राज्यों पर दांव तो अरविंद केजरीवाल का कई राज्यों पर पासा, उत्तर प्रदेश में सपा,आरएलडी व अन्य छोटे-छोटे दलों का गठबंधन तो पूर्वोत्तर में नई संभावनाओं के बीच देश की भूख मिटाने वाले किसानों का मुद्दा सबसे अहम होने के बावजूद भारतीय जनता पार्टी के लिए किसान आंदोलन और बढ़ती मंहगाई देश भर में प्रभाव डालने वाले कदम लग रहे हैं। शायद इसीलिए कृषि कानूनों की वापसी, पेट्रोल डीजल के दामों में कटौती का बड़ा दांव खेला गया। जाहिर है 13 राज्यों में विधानसभा चुनाव होंगे जो 2024 के आम चुनाव के पहले तक चलेंगे। इस तरह आगामी 13 विधानसभा चुनाव के नतीजे निश्चित रूप से 2024 के आम चुनावों को प्रभावित करेंगे और लिटमस टेस्ट साबित होंगे, क्योंकि तब तक न जाने कितने दुश्मन, दोस्त और कितने दोस्त, दुश्मन बन चुके होंगे।