इंडिया टुडे की डाटा टीम ने देश भर की ऐसी 150 सीटों की पहचान की है जहां हार-जीत का अंतर बेहद मामूली रहा, लेकिन दोनों शीर्ष उम्मीदवार तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार से दस फीसदी से ज्यादा वोटों से आगे रहे. 2019 के चुनाव में नई सरकार बनाने में इन सीटों की भूमिका अहम रहेगी, क्योंकि सरकार के खिलाफ पड़ने वाले औसत वोट (एंटी-इनकंबेंसी) या वोट पैटर्न में थोड़े से बदलाव से इन सीटों पर नतीजा पिछले चुनाव के मुकाबले पलट सकता है.
इस कड़ी में सबसे पहले देखते हैं कि देश की सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस के पास ऐसी कौन सी सीटें हैं, जहां वोट पैटर्न का जरा-सा बदलाव उसकी हार को जीत में बदल सकता है. इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस इन रनर-अप यानी दूसरे नंबर पर रहने वाले उम्मीदवारों की सीट को सबसे ताकतवर और जीतने वाली सीट के रूप में देख सकती है.
कांग्रेस के पास ऐसी 56 सीटें हैं, जहां पार्टी मामूली अंतर से हार गई थी, लेकिन तीसरे नंबर वाले उम्मीदवार को दस फीसदी से अधिक वोटों से पीछे छोड़ने में सफल रही थी.
उदाहरण के तौर पर 2014 में कर्नाटक की मांडया लोकसभा सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी राम्या जनता दल सेकुलर के उम्मीदवार से साढ़े पांच हजार वोट से हार गए थे. जीत दर्ज करने वाले जनता दल सेकुलर के सीएस पट्टाराजु और राम्या के बीच वोटों का अंतर महज 0.46 फीसदी था, जो लोकसभा के लिहाज से कड़ी टक्कर कही जाएगी. जबकि कांग्रेस प्रत्याशी और तीसरे नंबर के उम्मीदवार के बीच वोट का अंतर पूरे 36 फीसदी था.
कांग्रेस के पास कर्नाटक में सबसे ज्यादा ऐसी सुरक्षित सीटें हैं. कोप्पल, बेलगाम, बेल्लारी, हावेरी, बीजापुर और बीदर में कांग्रेस उम्मीदवार और जीतने वाले उम्मीदवार के बीच बहुत कम मार्जिन था जबकि तीसरा उम्मीदवार बहुत पीछे था.
दूसरे नंबर पर केरल है जहां कांग्रेस 2014 में 7 सीटों पर मामूली वोट के अंतर से हार गई थी. मध्यप्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में इस तरह की क्रमशः 5, 4 और 3 सीटें हैं.
देश भर में अलग-अलग पार्टियों के पास इस तरह की कुल 150 सीटें हैं, जहां दूसरे नंबर के उम्मीदवार ने तीसरे नंबर पर रहे उम्मीदवार से 10 फीसदी ज्यादा वोट हासिल किए थे, हालांकि मामूली अंतर से उन्हें नंबर वन यानी सीट जीतने वाले उम्मीदवार से हार मिली थी.