एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी राजनीतिक दलों को आदेश दिया है कि वे इस बांड के जरिये हासिल किए गए चंदे का विवरण सीलबंद लिफाफे में निर्वाचन आयोग को 30 मई तक सौंपें। इसी के साथ चुनावी चंदे की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने को लेकर चुनावी बांड की वर्तमान व्यवस्था में भी अपारदर्शिता का मामला तूल पकड़ चुका है।चूंकि राजनीतिक दल यह बताने के लिए बाध्य नहीं कि उन्हें किसने चुनावी बांड दिया? निर्वाचन आयोग और साथ ही चुनाव प्रक्रिया साफ-सुथरी बनाने के लिए सक्रिय संगठनों की मांग है कि चुनावी बांड खरीदने वाले का नाम सार्वजनिक किया जाए ताकि यह पता चल सके कि कहीं किसी ने किसी फायदे के एवज में तो चुनावी बांड के जरिये चंदा नहीं दिया? नि:संदेह चुनावी बांड के जरिये चंदा देने वालों की गोपनीयता बनाए रखने के पक्ष में यह एक तर्क तो है कि उन्हें वे राजनीतिक दल परेशान कर सकते हैं जिन्हें चंदा नहीं मिला, लेकिन यह आशंका दूर की जानी भी जरूरी है कि कहीं किसी लाभ-लोभ के फेर में तो चुनावी चंदा नहीं दिया जा रहा?