चारा घोटाले के चार मामलों के सजायाफ्ता और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने अब सुप्रीम कोर्ट से जमानत की गुहार लगाई है। राजद सुप्रीमो ने अपनी बढ़ती उम्र, गंभीर बीमारियों और आने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर मंगलवार को स्पेशल लीव पिटीशन उच्चतम न्यायालय में दाखिल की है। एसएलपी के जरिये लालू प्रसाद यादव ने चारा घोटाले के चाईबासा, देवघर और दुमका मामले में जमानत दिए जाने की दरख्वास्त सर्वोच्च न्यायालय से की है। इन तीनों मामलों में झारखंड हाई कोर्ट गंभीर आरोपों का हवाला देते हुए उनकी जमानत याचिका पहले ही खारिज कर चुका है।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जमानत याचिका में कहा गया है कि लालू प्रसाद की उम्र 71 साल हो गई है। उन्हें डायबटीज, बीपी, हृदय रोग सहित कई गंभीर बीमारियां हैं। फिलहाल, उनका रांची के रिम्स में इलाज चल रहा है। लालू प्रसाद यादव प्रतिदिन करीब 13 प्रकार की दवाओं का सेवन कर रहे हैं। जबकि आने वाले लोकसभा चुनाव में राजद सुप्रीमो के नाते भी उन्हें भूमिका निभानी है।
लालू प्रसाद यादव राष्ट्रीय जनता दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। इसके नाते 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी करनी है। जिसको लेकर पार्टी नेताओं के साथ उन्हें कई बैठक करनी होगी और रणनीति तय करनी होगी। उम्मीदवार भी तय करने होंगे। उम्मीदवारों को सिंबल देने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष का हस्ताक्षर होना जरूरी है, इसलिए उन्हें जमानत प्रदान की जाए।
झारखंड हाई कोर्ट ने 10 जनवरी, 2019 को लालू प्रसाद यादव को बड़ा झटका देते हुए उन्हें गंभीर आरोपों में जमानत देने से साफ मना कर दिया था। हाई कोर्ट के जस्टिस अपरेश कुमार सिंह की अदालत ने दोनों पक्षों की दलील सुनने के बाद सीबीआइ के जमानत नहीं देने की दलील मान ली। सीबीआइ कोर्ट ने लालू प्रसाद को देवघर, दुमका और चाईबासा कोषागार से अवैध निकासी के मामले में सजा सुनाई है। जबकि लालू प्रसाद यादव की ओर से हाई कोर्ट से उक्त तीनों मामलों में सजा को निलंबित करते हुए जमानत प्रदान करने का आग्रह किया गया था।
हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान लालू प्रसाद का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट के वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा था कि लालू प्रसाद को पूर्व में चाईबासा मामला (आरसी 20ए-96) में सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल चुकी है। सुप्रीम कोर्ट ने लालू के सिर्फ 11 माह जेल में रहने के बाद भी जमानत प्रदान की थी। सीबीआइ ने चाईबासा का दूसरा मामला (आरसी 68ए-96) भी आरसी 20ए-96 के समान ही है। क्योंकि ट्रेजरी भी एक है और उक्त मामले में सभी गवाह व दस्तावेज को इस मामले में भी संलग्न किया गया है।
वरीय अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने दुमका कोषागार से अवैध निकासी मामले में दलील देते हुए हाई कोर्ट को बताया था कि इस मामले में तत्कालीन विभागीय मंत्री विद्यासागर निषाद, तत्कालीन विभागीय सचिव बेक जूलियस, नेता आरके राणा, जगदीश शर्मा व जगन्नाथ मिश्र बरी हो गए तो लालू प्रसाद ने किसके साथ मिलकर अवैध निकासी का षड्यंत्र रचा। अदालत ने लालू प्रसाद को षड्यंत्र करने का दोषी पाया गया है, जबकि सीबीआइ षड्यंत्र साबित करने में विफल रही है। यदि यह मामला षड्यंत्र का रहता तो सभी को दोषी करार दिया जाना चाहिए। इससे साबित होता है कि लालू ने कोई षड्यंत्र नहीं किया। लालू पर कुछ अधिकारियों को सेवा विस्तार देने और खास पद पर पदस्थापित रखने का आरोप भी लगाया गया है, लेकिन ये आरोप प्रमाणित नहीं होते।
सिब्बल ने कहा था कि दुमका कोषागार मामले में सिर्फ एक सरकारी गवाह दीपेश चांडक के गवाही के आधार पर निचली अदालत ने सजा सुनाई है। नियमानुसार सरकारी गवाह साक्ष्यों को पुख्ता करने में मदद करता है। उसे प्रत्यक्ष साक्ष्य नहीं माना जा सकता है। एक ही मामले के बयान को सभी मामलों में संलग्न किया गया है, जो कि गलत है। निचली अदालत ने षड्यंत्र रचने के आरोप में सात साल व भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम (पीसी एक्ट) के आरोप में सात साल की सजा सुनाई है, जो कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ है।
सीबीआइ की ओर से लालू प्रसाद की जमानत का विरोध किया गया। सीबीआइ के अधिवक्ता राजीव सिन्हा ने कहा कि चारा घोटाला के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट से पूर्व में लालू प्रसाद को मिली जमानत को इन मामलों से जोड़ा नहीं जा सकता। इससे पहले भी लालू प्रसाद की ओर से इसी प्रकार की दलील दी गई थी, जिसको हाई कोर्ट पहले ही खारिज कर चुका है। इस कारण फिर से उन्हीं दलीलों के आधार पर जमानत मांगना उचित नहीं है। इस बार जमानत के लिए नया आधार लिया गया है, जिसमें कहा गया है कि लालू प्रसाद राजद के अध्यक्ष है। कहा गया कि रिम्स में लालू प्रसाद का इलाज बेहतर तरीके हो रहा है। इस कारण उन्हें जमानत नहीं मिलनी चाहिए।