नई दिल्ली : राफेल डील मामले में केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट की ओर से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की उन प्रारंभिक आपत्तियों को खारिज कर दिया, जिसमें सरकार ने याचिका के साथ लगाए दस्तावेजों पर विशेषाधिकार बताया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राफेल मामले में रक्षा मंत्रालय से फोटोकॉपी किए गोपनीय दस्तावेजों का परीक्षण करेगा. केंद्र ने कहा था कि गोपनीय दस्तावेजों की फोटोकॉपी या चोरी के कॉपी पर कोर्ट भरोसा नहीं कर सकता. यह फैसला सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बैंच ने सहमति से सुनाया है. बता दें, केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि दस्तावेज याचिका के साथ दिए गए हैं, वो गलत तरीके से रक्षा मंत्रालय से लिए गए हैं, इन दस्तावेजों पर कोर्ट भरोसा नहीं कर सकता. याचिकाकर्ता अरुण शौरी ने राफेल पुनर्विचार याचिका पर आये निर्णय पर कहा, हम दस्तावेजों की स्वीकार्यता पर केंद्र के तर्क को सर्वसम्मति से खारिज करने के आदेश से खुश हैं.
सरकार ने दावा किया था कि 14 दिसंबर, 2018 के कोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार के लिए दिए गए दस्तावेजों पर उसका विशेषाधिकार है. सरकार ने कहा था कि याचिका की सुनवाई के लिए इन दस्तावेजों पर कोर्ट संज्ञान ना ले. पूर्व वित्तमंत्री यशवंत सिन्हा, पत्रकार से नेता बने अरुण शौरी और सामाजिक कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दायर याचिका को खारिज करने की सरकार ने मांग की थी. केंद्र सरकार ने कोर्ट से कहा था कि तीनों याचिकाकर्ताओं ने अपनी समीक्षा याचिका में जिन दस्तावेजों का इस्तेमाल किया है, उनपर उसका विशेषाधिकार है और उन दस्तावेजों को याचिका से हटा देना चाहिए.
सरकार का कहना है कि मूल दस्तावेजों की फोटोकॉपी अनधिकृत रूप से तैयार की गईं और इसकी जांच की जा रही है. अटॉर्नी जनरल (अॅ) के के वेणुगोपाल ने दलील दी थी कि प्रस्तुत दस्तावेज विशेषाधिकार प्राप्त दस्तावेज हैं, जिन्हें भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 के अनुसार सबूत नहीं माना जा सकता है. इन दस्तावेजों को आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम के तहत संरक्षित किया जाता है. साथ ही एजी ने यह भी कहा कि दस्तावेजों के प्रकटीकरण को सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत धारा 8 (1) (ए) के अनुसार छूट दी गई है. याचिकाकर्ताओं में से एक प्रशांत भूषण ने अॅ के दावों को गलत बताते हुए कहा कि विशेषाधिकार का दावा उन दस्तावेजों पर नहीं किया जा सकता जो पहले से ही सार्वजनिक क्षेत्र में हैं. उन्होंने कहा कि भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 123 केवल “अप्रकाशित दस्तावेजों” की रक्षा करती है. एक अन्य याचिकाकर्ता अरुण शौरी ने टिप्पणी की कि वह यह स्वीकार करने के लिए अॅ के आभारी हैं क्योंकि उन्होंने माना है कि दस्तावेज वास्तविक हैं और संलग्न दस्तावेज वे फोटोकॉपी हैं.