नागरिकता छिनने के डर से बढ़ रही आत्महत्याएं

नागरिकता छिनने के डर से बढ़ रही आत्महत्याएं

News Agency : रिश्तेदारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का दावा है कि संभावित ‘देश निकाला’ का सामना कर रहे कुछ लोगों ने सदमे में आत्महत्या कर ली है.मई के महीने में एक दिन 88 साल के अशरफ़ अली ने अपने परिवार से कहा कि वो रमज़ान में इफ़्तार के लिए खाना लेने जा रहे हैं. खाना लाने की बजाय उन्होंने ज़हर खाकर अपनी जान ले ली.अली और उनका परिवार उस सूची में शामिल कर लिया गया था, जिसमें वो लोग हैं जिन्होंने साबित कर दिया था कि वे भारतीय नागरिक हैं.लेकिन उनके शामिल होने को उनके पड़ोसी ने ही चुनौती दे दी और अली को फिर से अपनी नागरिकता सिद्ध करने के लिए बुलाया गया था, अगर इसमें वे असफल होते तो उन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाता.

उनके गांव में रहने वाले मोहम्मद ग़नी कहते हैं, “उन्हें डर था कि उन्हें डिटेंशन सेंटर में भेज दिया जाएगा और उनका नाम अंतिम सूची से बाहर कर दिया जाएगा.असम में नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटिजेंस (एनआरसी) को 1951 में बनाया गया था ताकि ये तय किया जा सके कि कौन इस राज्य में पैदा हुआ है और भारतीय है और कौन पड़ोसी मुस्लिम बहुल बांग्लादेश से आया हुआ हो सकता है.इस रजिस्टर को पहली बार अपडेट किया जा रहा है. इसमें उन लोगों को भारतीय नागरिक के तौर पर स्वीकार किया जाना है जो ये साबित कर पाएं कि वे 24 मार्च 1971 से पहले से राज्य में रह रहे हैं. ये वो तारीख है जिस दिन बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अलग होकर अपनी आज़ादी की घोषणा की थी.भारत सरकार का कहना है कि राज्य में ग़ैर क़ानूनी रूप से रह रहे लोगों को चिह्नित करने के लिए ये रजिस्टर ज़रूरी है.बीती जुलाई में सरकार ने एक फ़ाइनल ड्राफ़्ट प्रकाशित किया था जिसमें 40 लाख लोगों का नाम शामिल नहीं था जो असम में रह रहे हैं. इसमें बंगाली लोग हैं, जिनमें हिंदू और मुस्लिम दोनों शामिल हैं.इस सप्ताह की शुरुआत में प्रशासन ने घोषणा की थी कि पिछले साल एनआरसी में शामिल किए लोगों में से भी एक लाख और लोगों को सूची से बाहर किया जाएगा और उन्हें दोबारा अपनी नागरिकता साबित करनी होगी.31 जुलाई को एनआरसी की अंतिम सूची जारी होगी, इसलिए रजिस्टर से बाहर किए गए लोगों में से आधे लोग खुद को सूची से बाहर किए जाने के ख़िलाफ़ अपील कर रहे हैं.1980 के दशक के अंतिम सालों से ही रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया के साथ ही सैकड़ों ट्रिब्यूनल स्थापित किए जा रहे हैं. वे नियमित रूप से संदेहास्पद मतदाता या ग़ैरक़ानूनी घुसपैठियों को विदेशियों के रूप में पहचान कर रहे हैं जिन्हें देश के निकाला जाना है.सिटिज़न फॉर जस्टिस एंड पीस संगठन के ज़ामसेर अली ने असम में आत्महत्या के ऐसे 51 मामलों की सूची बनाई है. उनका दावा है कि इन आत्महत्याओं का संबंध, नागरिकता छिनने की संभावना से उपजे सदमे और तनाव से है.उन्होंने बताया कि इनमें से अधिकांश आत्महत्याएं जनवरी 2018 के बाद हुईं, जब अपडेट किए हुए रजिस्टर का पहला ड्राफ़्ट सार्वजनिक किया गया.

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