कहीं कन्हैया बन न जायें बनारस के केजरीवाल

Do not become Kanhaiya, Kejariwal of Banaras

आलोक कौशिक,

बेगूसराय में twenty nine अप्रैल को मतदान होने वाला है। यहां जो माहौल इन दिनों बना हुआ है, वह एक दूसरे माहौल की भी याद दिलाता है। 2014 में जब वाराणसी में नरेंद्र मोदी से मुकाबला करने के लिए अरविंद केजरीवाल उतरे, तब भी पूरे देश से उनके समर्थन में जाने वालों का तांता लग गया। माहौल कुछ ऐसा बनाया गया, जैसे केजरीवाल प्रधानमंत्री को हरा सकते हैं। जब नतीजा आया, तो पता चला कि केजरीवाल साढ़े तीन लाख वोटों से हार चुके हैं। बेगूसराय भी कहीं बनारस साबित न हो, यह डर बिल्कुल निराधार नहीं है। भारत में चुनाव बेशक किसी जश्न से कम नहीं, लेकिन उनको लड़ा किसी जंग की तरह ही जाता है। बेगूसराय में यह लड़ाई तिकोनी है।

बेगूसराय में कन्हैया कुमार को सिर्फ गिरिराज सिंह का नहीं, उन तनवीर हसन का भी सामना करना है, जिन्होंने 2014 की मोदी लहर और भोला सिंह जैसे ताकतवर उम्मीदवार के बावजूद वहां से साढ़े तीन लाख से ज़्यादा वोट हासिल किए थे। तनवीर हसन का प्रदर्शन देखते हुए ही RJD गठबंधन के तमाम दलों के लिए उदारता दिखाने के बावजूद CPI के लिए यह सीट छोड़ने को तैयार नहीं हुई। अब ख़तरा यह है कि अगर कन्हैया कुमार ने तनवीर हसन के बहुत सारे वोट झटक लिए, तो गिरिराज सिंह वहां से जीत हासिल कर लेंगे। क्योंकि 2014 में BJP को वहां जो सवा चार लाख वोट मिले थे, उनमें एक बड़ा हिस्सा उन लोगों का है, जो मोदी और BJP के जुनूनी समर्थक हैं। इनके बीच कन्हैया बहुत बड़ी सेंधमारी नहीं कर पाएंगे। कन्हैया CPI के उम्मीदवार होकर बेगूसराय में तो नहीं जीत पाएंगे। CPI के डेढ़ लाख वोट हैं, जिन्हें कन्हैया को जीतने के लिए कम से कम तिगुना करना होगा।

बेगूसराय लोकसभा क्षेत्र से राजद प्रत्याशी तनवीर हसन का कहना है कि भाकपा नेता कन्हैया कुमार राजनीति में ‘नये आये हैं’ और भाजपा प्रत्याशी गिरिराज सिंह ‘काठ की हांडी’ हैं। उन्होंने कहा कि वह बेगूसराय से अपनी जीत को लेकर आश्वस्त हैं। बेगूसराय में त्रिकोणीय मुकाबले की खबरों को खारिज करते हुए उन्होंने कहा कि यहां से लड़ाई सिर्फ उनके और गिरिराज सिंह के बीच है, जबकि कन्हैया कुमार सिर्फ ऐसे ही ‘होने के लिए’ हैं। हसन ने कहा कि वामपंथी पार्टियों की मजबूत मौजूदगी की वजह से बेगूसराय को कभी ‘बिहार का लेनिनग्राद’ कहा जाता था। लेकिन, ninety दशक के बाद यह ‘लालूग्राद’ में बदल गया। तनवीर हसन ने कहा, ‘‘ जमीनी हकीकत यह है कि भाकपा की हालत पिछले चुनाव से अच्छी नहीं है और कन्हैया सिर्फ इस त्रिकोण में हैं।” पिछले लोकसभा चुनाव में भाकपा के प्रत्याशी राजेंद्र सिंह तीसरे स्थान पर रहे थे। दूसरे स्थान पर हसन थे।

हसन से जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष कुमार की बेगूसराय में लोकप्रियता के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, ‘‘नकारात्मक है। हो सकता है कि मैं मीडिया में लोकप्रिय नहीं हूं, लेकिन जमीनी हकीकत अलग है।” संसद पर हमला करने के मामले में दोषी करार दिये गये अफजल गुरु की बरसी पर तीन साल पहले कथित तौर पर राष्ट्रविरोधी नारे लगाने के मामले में गिरफ्तार होने के बाद कन्हैया कुमार लोकप्रिय हो गये। राजद प्रत्याशी ने यह स्वीकार किया कि गिरिराज सिंह उनके लिए चुनौती बन सकते हैं। हसन ने कहा, ‘‘ गिरिराज सिंह एक ‘ब्रांडेड’ नेता हैं। भाजपा के पास बहुत सारे ब्रांडेड नेता हैं। वह अपने विवादास्पद बयान के लिए जाने जाते हैं। उनको जिस तरह से पेश किया जाता है, वह चुनौती वाला है। लेकिन, सिर्फ ब्रांडिंग से आप पार नहीं जा सकते हैं। अब वह ‘काठ की हांडी’ हैं। यही नवादा में भी हुआ।

“भाजपा ने नवादा के मौजूदा सांसद गिरिराज सिंह को इस बार बेगूसराय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया है। इस बार राजग ने नवादा की सीट लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) के नेता को दिया है। गिरिराज सिंह पहले बेगूसराय से चुनाव नहीं लड़ना चाहते थे। बाद में कई दिनों के मान-मनौव्वल और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के साथ बैठक के बाद वह माने।तनवीर हसन ने कहा, ‘‘बेगूसराय अचानक से भारतीय राजनीति का ‘हॉट (चर्चावाला) सीट’ बन गया और पूरा देश देख रहा है कि यहां क्या हो रहा है। वास्तविकता यह है कि यहां के मतदाता काफी सजग हैं और काफी सोच-समझकर मतदान करते हैं।”

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