रांची : बिरसा मुंडा का बलिदान दिवस 9 जून को मनाया जाता है। सामंती राज व्यवस्था के विरुद्ध स्वराज की बलिदानी उद्घोषणा करने वाली ऐसी वनवासी आवाज जिसे गोरी हुकूमत अपने अथाह सैन्य बल से कभी झुका न सकी। जिन महान उद्देश्यों को लेकर इस हुतात्मा ने प्राणोत्सर्ग किया। वनवासी समाज में राष्ट्रीय चेतना की स्थापना की।बिरसा मुंडा के बलिदान दिवस की रस्मी कवायद के बीच ध्यान रखना बिरसा मुंडा का बलिदान दिवस: बिरसा मुंडा को गोरी हुकुमत झुका नहीं सकी**रांची:* होगा। कि 9 जून 1900 को बिरसा मुंडा की शहादत हुई। और 1908 में छोटा नागपुर टेनेंसी एक्ट लागू कर अंग्रेजी हुकूमत ने उन बुनियादी मुद्दों के राजकीय निराकरण की पहल की। जिनको लेकर बिरसा ने ब्रिटिश महारानी तक को परेशान कर दिया था।यह बात शक्तिशाली महिला संगठन के कार्यक्रम संयोजक रवि गोयल ने आदिवासी बाहुल्य ग्राम चीटोरी खुर्द में बताई। बिरसा मुंडा की पुण्य तिथि पर संवाद कार्यक्रम में किरण कुमार मुंबई तिस ने कहा की नीति आयोग के आंकड़े खुद कहते है कि करीब 60 फीसदी वनवासी शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास जैसी मूलभूत आवश्यकताओं से वंचित है। जिस साहूकारी,जमीदारी,और फारेस्ट एक्ट के विरुद्ध बिरसा मुंडा ने”उलगुलान\”महाविद् रोह का नेतृत्व किया था वे तीनों बुनियादी मुद्दे आज भी वनवासियों के सामने खड़े है।अंग्रेजी राज में वनवासियों की जमीन गैर वनवासी के खरीदने पर रोक का कानून बना। लेकिन आज मप्र,छतीसगढ़, महाराष्ट्र यूपी,में लागू अलग अलग भू-राजस्व संहिताएं कलेक्टरों को यह अधिकार देती है कि वे अपने विवेक से ऐसी अनुमतियां जारी कर सकते है भारत में कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्, रोजगार, आतंकवाद, अल्पसंख्यक, सामाजिक न्याय, भ्रष्टाचार जैसे तमाम विषयों पर राष्ट्रीय, क्षेत्रीय नीतियां बनती रही हैं।लेकिन वनवासी नीति क्यों नहीं बनाई गई है। सिवाय झारखंड को छोड़कर। कार्यक्रम में शक्ति शाली महिला संगठन की पूरी टीम,स्वयं सहायता समूह की आदिवासी महिलाओं ने भाग लिया एवम अपनी जानकारी साझा की।
बिरसा मुंडा का बलिदान दिवस: बिरसा मुंडा को गोरी हुकुमत झुका नहीं सकी
