र्कोंचग संस्थाओं में झूठ और फरेब

अरुण कुमार चौधरी
रांची :
इन दिनों कोचिंग संस्थाओं में तरह-तरह के विज्ञापनों का चकाचौंध से जगमगाता हुआ विज्ञापन में भोली-भाली छात्रों को फंसाते रहती है। जो कि पूरी तरह से एक माफिया गिरी है तथा यह बेईमानों का एक समूह बनते जा रहा है। एक समय में हिटलर कहा करता था कि सौ झूठ बोलो तो वह पूरी तरह से सत्य लगने लगेगा। यह बात अब राजनीतिक व्यक्तियों से लेकर बड़े-बड़े संस्थाओं के मार्केटिंग में देखने को मिल रहा है। इसी से मिलता-जुलता आकाश कोचिंग है। यह कोचिंग संस्था का विज्ञापन में करीबन एक सौ करोड़ रुपया सलाना खर्च होता है और इस झूठी विज्ञापन से अपना पूरा अरबों का सम्राज्य बना लिया है और ये अब भारत के बड़े-छोटे शहरों में अपना फ्रेंचाइज के तहत काम कर रहे हैं और इसी फ्रेंचाइज के अंतर्गत रांची सेंटर में करीबन आकाश कोचिंग में1200 छात्र मेडिकल में नामांकन के लिए परीक्षा दिये थे जिसमें डबल डीजिट छात्र ही उत्तीर्ण हुये हैं। जबकि इनके विज्ञापन में बताया जाता है कि सैकड़ों छात्र उत्तीर्ण हुये हैं। इस संबंध में केंद्र सरकार के अनुसार पूरे भारत में साढ़े 14 लाख विद्यार्थी मेडिकल प्रवेश में परीक्षा में बैठे थे जिसमें 7,97,042 विद्यार्थी उत्तीर्ण हुये हैं और मेडिकल का सीट पूरे भारत में सरकारी तथा गैर-सरकारी कॉलेजों में 65000 ही है और पूरे झारख्ांड में 65 छात्रों की नामांकन की संभावना है तथा इसमें 15-16 छात्र रांची के होंगे। जबकि सारे र्कोंचग संस्थाओं के विज्ञापन में सैकड़ों छात्रों का फोटो तथा गलत रौल नंबर देकर विज्ञापन प्रकाशित हो रहे हैं। इसमें से रांची के कई कोचिंग संस्थाएं करोड़ों रुपये के विज्ञापन खर्च कर चुके हैं और छात्रों को अपने चंगुल में फंसा रहे हैं इस संबंध में आकाश कोचिंग सेंटर रांची के संबंध में जानकारी मिली है कि यहां पर प्राध्यापक/अध्यापक का स्तर बहुत ही निम्न तरह का है। जिसे हम लोग रोड छाप कह सकते हैं। इन शिक्षकों की शैक्षणिक योग्यता पूरी तरह से संदिग्ध है तथा इन्हें कोचिंग सेंटर वाले मात्र 20-25 हजार रुपये प्रतिमाह देते हैं। इन कोचिंग संटरों में अब आकाश के प्रधान ऑफिस दिल्ली से कोई भी विषय का कोई भी अध्यापक रांची सेंटर में पढ़ाने नहीं आता है तथा अब इस सेंटर में सिर्फ आकाश के नाम पर छात्रों का नामांकन हो रहा है, परंतु प्रधान कार्यालय के गाईड लाईन के अनुसार कोई भी शैक्षणिक रूटिन काम नहीं कर रहा है। इन सेंटरों से फ्रेंचाइज में 25 प्रतिशत का हिस्सा प्रधान कार्यालय को मिलता है और उसका कोई भी किसी तरह का दखल नहीं रहता है जिसके चलते रांची सेंटर में छात्र की पढ़ाई ठीक से नहीं हो रही है और जिसके चलते बच्चों का नामांकन मेडिकल तथा अच्छे इंजिनिर्यंरग कॉलेज में नही हो रहा है। इस संबंध में कई अध्यापकों ने हमारे संवाददाता को बताया कि आकाश कोचिंग साइंस के कई विषयों में बच्चों को स्पष्ट उत्तर नहीं मिलता है केवल रटा-रटाया उत्तर मिलता है। जिसके कारण बच्चों का शैक्षणिक स्तर बढ़ने के बजाय नीचे गिरते जा रहा है और अभिभाव के लिए एक गंभीर समस्याएं बन गई है। ऐसे इस वर्ष मेडिकल में छात्रों का नामांकन रांची शहर से नगन्य ही है। सरकार तथा समाजसेवी को इन माफिया के खिलाफ में जनआंदोलन करना चाहिए ताकि बच्चों का भविष्य उज्जवल हो सके। अब जानिये कोटा का हाल : इसी क्रम में शर्मा जी पूछेंगे तो बताएंगे आईआईटी, नीट की तैयारी कर रहा है कोटा से, कूल लगता है, बच्चे दो साल में कोटा से निकल जाते हैं, कोटा सालों तक बच्चों से नहीं निकलता। ऊपर लिखी गई पंक्तियां टीवीएफ पर शुरू हुई नई वेबसीरीज कोटा फैक्ट्री की हैं। ये ऐसी पहली सीरीज़ है जो ब्लैक एंड व्हाइट है और जो लॉन्च होने के कुछ ही दिनों में काफी लोकप्रिय बन गई। इसके डायलॉग्स को लेकर कई तरह के मीम्स बन रहे हैं जो सोशल मीडिया पर काफी साझा किए जा रहे हैं। राजस्थान का मशहूर शहर कोटा मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी करने वाले बच्चों के लिए अनजाना नहीं है। घर से दूरी, पढ़ाई का बोझ, अच्छे नंबरों के दबाव के साथ, स्टूडेंट्स राजस्थान के कोटा शहर में किस्मत आज़माने जाते हैं। यहां पूरे भारत से स्टूडेंट्स आईआईटी और नीट की तैयारी करने जाते हैं। इन्हीं स्टूडेंट्स के हालात और समस्याओं की कहानी को द वायरल फीवर (टीवीएफ) ने कोटा फैक्ट्री के माध्यम से दिखाया है। वेब सीरीज वहां के स्टूंडेंट्स की कई समस्याओं बात करती है। इसमें इन्हीं स्टूडेंट्स की कहानी को दिखाया गया है। वे सभी छात्र जो पहले हॉस्टल की ज़िंदगी जी चुके हैं, जो हॉस्टल मे रह रहे हैं या फिर भविष्य में रहने वाले हैं, वे सभी अपनी ज़िंदगी को इस सीरीज़ की कहानी से जुड़ा पाते हैं। इस कहानी में एक किरदार हैं जीतू भैया और दूसरा किरदार है वैभव पांडे। वैभव दसवीं पास करने के बाद आईआईटी की तैयारी करने आया है। कहानी में शिक्षा की व्यवसायिक समस्याओं समेत, खाने की और पढ़ाई की समस्याओं पर रौशनी डाली गई है। इसके डायलॉग और भावनात्मक अपील लोगों को बहुत पसंद आ रही है।
”हम यहां तब से हैं जब कोटा फैक्ट्री नहीं शहर हुआ करता था”
”दोस्ती कोई रिवीज़न थोड़ी है जो की ही जाए।।।”
ये कुछ ऐसे डायलॉग हैं जो सोशल मीडिया पर ख़ूब वायरल हो रहे हैं।
‘कोटा फैक्ट्री’ देखने वाले कई लोगों को ये सीरीज़ बहुत पसंद आई लेकिन कुछ ने इसे एवरेज सीरीज़ भी बताया है। दिल्ली विश्वविद्यालय में पढ़ चुके राघवेंद्र शर्मा बताते हैं, इसकी सबसे अच्छी बात ये लगी कि ये हमें पुराने दिनों में ले जाकर खड़ा कर देती है। इसकी सबसे ज़्यादा पसंद आने वाली बात इसकी बेहतरीन कहानी है जो अपने साथ जोड़े रखती है। बनारस से आईआईटी की तैयारी करने वाले तन्मय पाठक बताते हैं, ये सीरीज़ काफी रीयल है। जो लोग कोटा में नहीं रहते हैं वो भी इससे जुड़ पाते हैं और प्यार वाला एंगल तो बहुत ही अच्छा था। कोटा से आईआईटी की तैयारी कर चुके दिव्यम ने बताया, कहानी अच्छी थी लेकिन इस सीरीज़ में जो बच्चों का घूमना दिखाया गया है उतना असल में नहीं होता। मैं इसे एक एवरेज सीरीज कहूंगा। मीडिया के अलग अलग चैनल और अखबार इसे अलग अलग नज़र से देखते हैं। अंग्रेज़ी वेबसाइट द वायर ने लिखा है, ये कोटा शहर के चित्रात्मक दृश्यों को सामने लाता है। कहानी के शुरू होते ही हम सुनते हैं कि एक ऑटो रिक्शा वाला कहता है-ये एक शहर नहीं बल्कि हॉस्टल है’। इसके बाद वो शहर के इतिहास के बारे में बताता है। जिससे कहानी का संदर्भ और क़िरदार उभर कर आता है। हिंदी वेबसाइट ‘अमर उजाला’ ने लिखा है, ”वेब सीरीज ‘कोटा फैक्ट्री’ को ब्लैक एंड व्हाइट में रिलीज करने का टीवीएफ का आइडिया भी कमाल का है। मनोरंजन जगत जब स्पेशल इफेक्ट्स के एवेंजर्स दौर में पहुंच चुका है। एक ज़मीन से जुड़ी कहानी को ब्लैक एंड व्हाइट में पेश करना इस सीरीज़ का पहला हुकर प्वाइंट है। अंग्रेज़ी वेबसाइट ‘द क्विंट’ ने लिखा है, ”बहुत समय बाद शिक्षा की दुनिया में ऐसा व्यंग्य देखने को मिला है जो बेहतरीन प्रदर्शन के साथ एक मज़बूत कहानी कहता है। कोटा फैक्ट्री में मुख्य किरदार हैं जीतू भैया। वे एक ऐसे फिज़िक्स टीचर हैं जो स्टूडेंट्स की समस्याओं और वास्तविकता को समझता है। उनका असली नाम जितेंद्र कुमार है। ये खुद आईआईटी से पढ़े हुए हैं और कोटा से कोचिंग कर चुके हैं। आईआईटी से पढ़ाई करने के बाद जितेंद्र ने एक्टिंग की राह चुनी। कॉलेज में थिएटर कर चुके हैं। सीनियर्स के साथ मिलकर टीवीएफ़ से ही अपने एक्टिंग करियर की शुरूआत की। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ”ये क़िरदार मेरी असल ज़िंदगी से ज़्यादा प्रभावित नहीं हैं। हां, मैंने भी बच्चों को फिज़िक्स पढ़ाया है। लेकिन मैं कहीं से भी इस तरह का टीचर नहीं था। हमारे पुराने टीचर्स और राइटर्स के अनुभव को एक साथ जोड़ कर ये क़िरदार बुना गया है। मैंने भी कोटा से कोचिंग ली है लेकिन अभी का कोटा काफी बदल गया है। हमें आज का कोटा दिखाना था तो इस पर काफी रिसर्च की गई। अब माहौल काफी बदल गया है। हमारे समय पर हॉस्टल कल्चर कम था। हम फैमली के साथ रहते थे। लेकिन शूटिंग करते समय पुराने दिनों को खूब याद किया। उन्होंने बताया कि ‘ये कहानी एक स्टूडेंट की समस्याओं और उसे अपने टीचर से मिली मदद के ऊपर है। हमारा मकसद है उस बदलाव को दिखाना है जो पढ़ने के लिए बाहर जाने वाले बच्चों की ज़िंदगी में आते हैं। द वायरल फीवर (टीवीएफ) ने ये वेबसीरीज़ 16 अप्रैल 2019 को लॉन्च की थी। सीरीज के 5 एपिसोड हैं जो 30 मिनट से लेकर 46 मिनट तक के हैं।

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