माननीय से लेकर अफसर तक क्‍यों बदलवाते हैं टाइल्‍स, एसी और सोफा?

आपको अक्सर सुनने को मिलता है कि फलां आदमी के लिए यह सरकारी बंगला तैयार हो रहा है तो फलां आदमी के लिए उस सरकारी बंगले में रंग-रोगन का काम चल रहा है. भारत सरकार की एजेंसी केंद्रीय लोक निर्माण विभाग (सीपीडबल्यूडी) भी विधायक, सांसद, मंत्री और अधिकारियों के फरमाइश का विशेष ख्याल रखती रही है. लेकिन, अब इस तरह के शौक पालने वाले अधिकारी और मंत्रियों पर कार्रवाई भी संभव है. ऐसे ही एक मामले में बिहार के सदस्य (न्यायिक) लोकायुक्त ने संज्ञान लेते हुए कार्रवाई के आदेश जारी किए हैं.

आखिर ऐसा क्या होता है कि पांच महीने पहले खरीदा गया एसी पुराना हो जाता है? एसी ही नहीं सोफा, पंखा और महंगे टाइल्स भी बदल दिए जाते हैं. हाल ही में बिहार के सदस्य (न्यायिक) लोकायुक्त ने सरकारी बंगलों में हो रहे खर्च से संबंधित एक मामले की सुनवाई में पाया कि मंत्री, जज और अधिकारी जब भी किसी बंगले में जाते हैं, तो वहां सोफा, पर्दा, पंखा, टाइल्स और यहां तक की चालू हालत में एसी भी बदल दिए जाते हैं.

लेकिन, अब सरकारी बंगलों में रहने से पहले उसकी साज-सज्जा और सामान बदलने के नाम पर लाखों रुपए खर्चा करना दुरुपयोग की श्रेणी में आएगा. लोकायुक्त ने ऐसे फिजूलखर्ची पर लगाम लगाने के लिए भवन निर्माण विभाग को एक आदेश जारी की है. बिहार के सदस्य लोकायुक्त ने कहा कि सामान बदलने में यह भी नहीं देखा जाता है कि उस सामान को कब खरीदा गया? पैसों की इस तरह से फिजुलखर्ची पर अब बंद करने की जरूरत है. भविष्य में सरकारी बंगलों में अनावश्यक पैसा खर्च न हो, इसके लिए ठोस कदम उठाए जाएं. अब सरकारी बंगला छोड़ते या उसमें रहने के लिए आते समय लोगों का वीडियोग्राफी अनिवार्य की जाए.

देश की जानी-मानी मनोवैज्ञानिक और दिल्ली की लेडी इरविन कॉलेज की विजिटिंग फैकल्टी डॉ जयंती दत्ता न्यूज 18 हिंदी के साथ बातचीत में कहती हैं, ‘यह एक तरह की मानसिक बीमारी है, जिसे Grandiosity कहते हैं. यह बीमारी राजनेताओं और ब्यूरोक्रेट्स में विशेषतौर पर देखा जाता है. इस बीमारी में मरीज समझता है कि मेरे पास बहुत पावर है. नया पद हासिल करने के बाद मरीज उसको प्रदर्शित करने के लिए आजमाइश शुरू कर देता है. अपने परिवार और दोस्तों को दिखाता है कि मैं भी अब किसी से कम नहीं हूं. इस बीमारी का शिकार मरीज भूल जाता है कि देश के करोड़ों लोग कैसे रहते हैं? ये लोग पेथोलोजिकल माइंडसेट के होते हैं.’

दत्ता आगे कहती हैं, ‘इस बीमारी से ग्रस्त लोग दूसरों से बेहतर दृष्टिकोण, दूसरों की तुलना में दूसरों के प्रति तिरस्कार या नीचता के साथ-साथ विशिष्टता की भावना रखते हैं. व्यक्ति अवास्तविक तरीके से प्रतिभा, क्षमता और उपलब्धियों को बढ़ाता है. व्यक्ति अपनी अयोग्यता में विश्वास करता है या अपनी सीमाओं को नहीं पहचानता है. इस बीमारी में व्यक्ति के दिमाग में भव्य कल्पनाएं बैठ जाती हैं. व्यक्ति मानता है कि उसे अन्य लोगों की आवश्यकता नहीं है.’

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