रग्बी में परचम लहराती ये आदिवासी लड़कियां

रग्बी में परचम लहराती ये आदिवासी लड़कियां

News Agency : एशियाई रग्बी चैंपियनशिप के आख़िरी मैच में शक्तिशाली सिंगापुर की टीम को 21-19 से हराकर भारतीय महिला टीम ने न केवल किसी ’15-ए-साइड’ अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट में अपनी पहली जीत हासिल की, बल्कि कांस्य पदक भी जीता.भारतीय टीम की 15 खिलाडियों में पांच ओडिशा से थीं. ये पाँचों लड़कियां भुवनेश्वर के ‘कलिंग इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंसेज’ यानी ‘किस’ की छात्राएं हैं.इनमें एक हैं सुमित्रा नायक जिन्होंने मैच ख़त्म होने के सिर्फ़ 2 मिनट पहले एक पेनल्टी स्कोर कर भारतीय टीम की जीत में अहम भूमिका अदा की. उस ऐतिहासिक क्षण के बारे में पूछते ही सुमित्रा का चेहरा खिल उठता है. वे कहतीं हैं, “हमारे लिए स्कोर करना मुश्किल हो रहा था क्योंकि सिंगापुर काफ़ी तगड़ी टीम है और पिछली बार हमें बहुत बुरी तरह हरा चुकी है.जाजपुर ज़िले के एक ग़रीब आदिवासी परिवार की लड़की सुमित्रा की मां की मृत्यु 1999 में हो गई थी. उस समय सुमत्रा बहुत छोटी थीं और उनके चार और भाई बहन भी थे.सुमित्रा के पिता के लिए परिवार संभालना मुश्किल हो रहा था. साल 2006 में कहीं से उन्होंने ‘किस’ के बारे में सुना और सुमित्रा को वहां दाख़िल करा दिया.बाद में उनके बाक़ी भाई-बहन भी वहां आ गए. साल 2007 में जब ‘किस’ की टीम ने लंदन में 14 वर्ष से कम आयु वर्ग की विश्व चैंपियनशिप का ख़िताब जीता, उसके बाद सुमित्रा रग्बी की क़ायल हो गईं और इस खेल में महारत हासिल करने की कोशिश में जी जान से जुट गईं.विजयी भारतीय टीम में शामिल ‘किस’ की बाक़ी चार लड़कियों की कहानी भी सुमित्रा की कहानी से मिलती-जुलती है. केओन्झर ज़िले की मीनारानी हेम्ब्रम के पिता के गुज़र जाने के बाद उनकी मां रोज़गार की तलाश में भुवनेश्वर आ गयीं और लोगों के घरों में बर्तन मांजकर गुज़ारा करने लगीं. फिर उन्होंने ‘किस’ के बारे में सुना और मीना का एडमिशन वहां करवा दिया.

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