मेघालय में अकेले जूझ रही है बीजेपी

“हम एक धर्मनिरपेक्ष देश के नागरिक हैं और किसी भी राजनीतिक पार्टी को अपनी राजनीति करने से पहले इस बात का ध्यान रखना होगा. मेघालय के जनजातीय लोग सैकड़ों सालों से इस तरह का खान-पान करते आ रहे हैं. यह हमारी रिवाज के अनुसार है. कोई भी पार्टी अपने राजनीतिक फायदे के लिए गोमांस पर प्रतिबंध लगाने की बात कैसे कर सकती है?”

शिलॉन्ग शहर में रहने वाली अमांदा बसाइयवमोइट अपनी नाराज़गी कुछ इस कदर व्यक्त करती हैं. दरअसल, अमांदा पूर्वोत्तर राज्यों में भाजपा की राजनीति करने के तरीके पर सवाल उठाती हैं.

“किसी भी धर्म-समुदाय के खान-पान, भाषा और संस्कृति के साथ आप छेड़छाड़ नहीं कर सकते. ये हमारी भावनाओं के खिलाफ है. भाजपा जानती है कि वो मेघालय जैसे जनजातीय प्रदेश में अपनी सरकार नहीं बना सकती, लेकिन उसके साथ गठबंधन करने वाले दलों को ज़रूर सोचना चाहिए वरना नुकसान भाजपा को नहीं यहां के स्थानीय दलों को ही उठाना पड़ेगा.”

मेघालय में नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक एलायंस सरकार में शामिल भाजपा प्रदेश की दो संसदीय सीट तुरा और शिलॉन्ग से अकेले चुनाव लड़ रही है. लेकिन ईसाई बहुल इस राज्य में भाजपा को नागरिकता संशोधन विधेयक और गोमांस पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों पर कठिन सवालों का सामना करना पड़ रहा है.शिलॉन्ग के ही रहने वाले खासी समुदाय के जोअनेस लामरे भी भाजपा की इन बातों को अपने समुदाय के ख़िलाफ़ मानते हैं.

वो कहते हैं, “मेघालय और पूर्वोत्तर राज्यों में जनजातीय लोगों का एक निर्धारित खान-पान है. ऐसे में खासकर ग्रामीण लोगों के एक बड़े वर्ग के मन में यह डर है कि अगर भाजपा सत्ता में आती है तो वो उनकी धार्मिक आज़ादी में दखलअंदाजी करेगी या फिर फ़ूड हैबिट पर अंकुश लगाने की कोशिश करेगी. इसके साथ ही नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भी लोगों के मन में डर है. क्योंकि भाजपा खुलेआम कह रही है कि अगर वो फिर से केंद्र की सत्ता में आई तो इस बिल को लागू करवाएगी.”

शिलॉन्ग लोकसभा क्षेत्र की मतदाता ललरीतपुई कहती हैं,” भले ही बीफ पर प्रतिबंध को लेकर फिलहाल केवल चर्चा हो रही है लेकिन कई शहरों में इसको लेकर हिंसा हुई है. लोगों की जान गई है. हमने अखबारों में पढ़ा है. मेघालय में भी गांव के लोग इस बात पर चर्चा करते हैं. मेरा सीधा कहना है कि हम ऐसी पार्टी के पक्ष में वोट नहीं करेंगे. गांव में अधिकतर लोग भी ऐसा ही सोचते हैं.”

वैसे चुनावी मौसम में भगवा पार्टी इन दोनों ही मुद्दों पर यहां फिलहाल कोई चर्चा नहीं कर रही है. लेकिन, फिर भी खासकर मेघालय के लोगों के मन में कुछ शंकाएं है. शायद यही कारण रहा होगा कि भाजपा ने बीते 27 फरवरी को आदिवासी परिषद चुनाव में अपना एक भी उम्मीदवार नहीं उतारा और फायदा एनपीपी ने ले गई.

दरअसल, मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस सरकार में भाजपा के शामिल होने के बावजूद मुख्यमंत्री कॉनराड संगमा ने नागरिकता संशोधन विधेयक का खुलकर विरोध किया था. गारो जनजाती से आने वाले मुख्यमंत्री संगमा इस बात को अच्छी तरह समझते हैं कि नागरिकता बिल वाले मुद्दे पर चुप्पी धारण करने से उन्हें राज्य में कितना नुकसान उठाना पड़ सकता है.

असम में साल 2016 में पहली बार अपनी पार्टी की सरकार बनाने के बाद भाजपा ने पूर्वोत्तर राज्यों की गैर कांग्रेस पार्टियों को साथ लेकर नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस (नेडा) का गठन किया था. भाजपा के नेडा गठन करने का मकसद पूर्वोत्तर के राज्यों से कांग्रेस का सफाया करना था लेकिन पार्टी के हिंदूत्व से जुड़े कुछ मुद्दे यहां के क्षेत्रिय दलों के साथ टकराव का कारण बनते गए.

लिहाजा मेघालय में गठबंधन सरकार चलाने वाली देश की इतनी बड़ी पार्टी को यहां अकेले चुनाव लड़ना पड़ रहा है और मेघालय डेमोक्रेटिक एलायंस ने शिलॉन्ग सीट पर अपना साझा उम्मीदवार उतारा है.

शिलॉन्ग सीट से चुनाव लड़ रहे डेमोक्रेटिक एलायंस के साझा उम्मीदवार तथा यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी के महासचिव जेमिनो माथोह कहते हैं,” पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ नतीजे आने के बाद एलायंस हुआ था ताकि सरकार गठन करने के लिए जरूरत पड़ने वाली संख्या को पूरा किया जा सके. लेकिन हमारी विचारधारा उनसे अलग है.”

वहीं, मेघालय प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष सिबुन लिंगदोह नागरिकता संशोधन बिल और बीफ पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों से परे इस बार के चुनाव में अपनी पार्टी के केंद्रीय नेताओं से सहयोग नहीं मिलने से खफा है.

वो बिना किसी की परवाह किए कहते हैं,”मेघालय चुनाव में पार्टी ने दोनों सीटों से उम्मीदवार तो खड़े कर दिए हैं लेकिन आगे कोई मदद नहीं मिल रही है. यहां भाजपा के पक्ष में हवा है लेकिन अभी हमारे पास न कोई चुनाव प्रभारी है और न कोई संगठन मंत्री है. पार्टी चुनाव पर पैसे भी खर्च नहीं कर रही है. यहां केवल नाम के लिए बीजेपी है. सबकुछ एनपीपी के हाथ में है. जो भी करना है वो कॉनराड संगमा से पूछ कर करना है. ऐसे में पार्टी का आगे बढ़ाना कैसे संभव है.”

शिलॉन्ग लोकसभा सीट से छह उम्मीदवार मैदान में हैं. इनमें सबसे मजबूत उम्मीदवार मौजूदा सासंद तथा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता विंसेंट पाला को माना जा रहा है.

दरअसल, शिलॉन्ग सीट पर लंबे समय से कांग्रेस का उम्मीदवार ही जीत रहा है. केंद्र में मंत्री रह चुके पाला 2009 से शिलॉन्ग सीट से सांसद हैं. जबकि भाजपा ने उनके सामने सेनबोर शुलई को अपना उम्मीदवार बनाया है. शुलई 2013 में साउथ शिलॉन्ग से कांग्रेस के विधायक थे. लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में जब उन्हें कांग्रेस से टिकट नही मिला तो वे बीजेपी से चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे.

शिलॉन्ग में लंबे अरसे से पत्रकारिता कर रहे वरिष्ठ पत्रकार दीपक वर्मा कहते हैं, “मेघालय एक जनजातिय और ईसाई बहुल प्रदेश है, लिहाजा उत्तर भारत के हिंदी पट्टी वाले राज्यों में भाजपा जिस तरह राजनीति करती आई है वो यहां मुमकिन नहीं है.”तो क्या भाजपा को नागरिकता संशोधन विधेयक और गोमांस पर प्रतिबंध जैसे मुद्दों के कारण नुकसान उठाना पड़ेगा?

इस सवाल का जवाब देते हुए वर्मा कहते हैं,”मेघालय में भाजपा का कोई मजबूत आधार नहीं है, इसलिए उसे कोई फर्क नहीं पड़ेगा. लेकिन, भाजपा एनपीपी के नेतृत्व वाली डेमोक्रेटिक एलायंस सरकार में शामिल है, इसलिए ग्रामीण इलाकों के मतदाता एनपीपी के पक्ष में वोट डालते समय इन मुद्दों पर जरूर विचार कर सकते हैं.”

60 सीटों वाली मेघालय विधानसभा में भाजपा के केवल दो विधायक हैं. राजनीति की समझ रखने वाले लोग मानते हैं कि मेघालय में लोग पार्टी को नहीं उम्मीदवार को वोट करते हैं. लेकिन भाजपा के ‘हिंदूत्व’ से जुड़े मुद्दों के कारण इस बार के चुनाव में पार्टी काफी चर्चा में है. लिहाजा सत्तारूढ़ एनपीपी ने भी चुनाव में भगवा पार्टी से किनारा कर लिया है.

पत्रकार दीपक वर्मा कहते हैं कि मौजूदा चुनावी माहौल में शिलॉन्ग सीट पर कांग्रेस का पलड़ा ही भारी दिख रहा है जबकि तुरा सीट पर एनपीपी की अगाथा संगमा और पूर्व मुख्यमंत्री डॉ मुकुल संगमा के बीच कांटे की टक्कर होगी.

तुरा सीट की बात करें तो साल 1991 से पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पी.ए. संगमा परिवार के सदस्य इस सीट पर जीतते आ रहें है. वैसे यह सीट 1977 से कांग्रेस के पास रही है. बाद में जब पी.ए. संगमा ने कांग्रेस छोड़कर ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस और एनसीपी से चुनाव लड़ा तो वही यहां से सांसद चुने गए.

इसके बाद तुरा सीट से अगाथा संगमा और कॉनराड संगमा चुनाव जीतकर संसद पहुंचे. यह भाजपा के लिए पहला मौका है जब पार्टी ने साल 1971 के बाद तुरा सीट पर पहली बार अपना उम्मीदवार खड़ा किया है.

भाजपा ने रिकमैन जी मोमिन को तुरा सीट से अपना उम्मीदवार बनाया है. इससे पहले रिकमैन ने पिछले साल रोंगजेंग विधानसभा सीट चुनाव लड़ा था लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा. शिलॉन्ग और तुरा दोनों सीट पर 11 अप्रैल को मतदान होने हैं और सभी पार्टियां अपने-अपने तरीकों से यहां के मतदाताओं को रिझाने की कोशिश कर रही हैं.

(एक ब्लाग से साभार)

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